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Mahabharat: क्या गांधारी का जीवन केवल दुख और पीड़ा से भरा था जहां बेटों और पति दोनों ने दिया कष्ट

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महाभारata Katha में कई पात्रों के दुखद जीवन का वर्णन है, लेकिन गांधारी का जीवन सबसे अधिक कष्टमय माना जाता है। बचपन से लेकर विवाह और फिर अपने बेटों के विनाश तक, गांधारी का हर कदम पीड़ा और त्याग से भरा था।

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गांधार की राजकुमारी गांधारी का विवाह हस्तिनापुर के अंधे राजा धृतराष्ट्र से हुआ। यह विवाह राजनीतिक मजबूरी का परिणाम था, जिसने गांधारी के जीवन में दुखों का पहला अध्याय खोला। उन्होंने पति की अंधता के कारण स्वयं भी आंखों पर पट्टी बांध ली, जो आज भी उनकी निष्ठा का प्रतीक माना जाता है।

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Mahabharata में वर्णित है कि धृतराष्ट्र का अस्थिर चित्त और पुत्र दुर्योधन के प्रति अत्यधिक मोह गांधारी के दुख का बड़ा कारण बने। उन्होंने हमेशा अपने पति को धर्म और न्याय का पालन करने की सलाह दी, लेकिन धृतराष्ट्र ने कभी उनकी बातें नहीं मानीं।

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गांधारी ने अपने पुत्र दुर्योधन और कौरवों को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए कई बार समझाया, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा और पांडवों के प्रति ईर्ष्या ने उन्हें विनाश के मार्ग पर पहुंचा दिया। द्रौपदी के चीरहरण जैसे कृत्य ने गांधारी को भीतर तक झकझोर दिया।

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महाभारata Katha में शकुनि का किरदार नकारात्मक रूप में दिखाया गया है। उसने हस्तिनापुर में फूट और क्लेश फैलाकर गांधारी के जीवन को और अधिक कष्टमय बना दिया। आखिरकार, गांधारी ने शकुनि को भी उसके कर्मों का फल भुगतने का श्राप दिया।

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कौरवों और पांडवों के बीच हुए महाभारत युद्ध में गांधारी के सभी सौ पुत्र मारे गए। यह क्षण उनके जीवन का सबसे दर्दनाक समय था, जब उन्होंने अपने सारे पुत्रों को खो दिया और खुद को पूरी तरह अकेला महसूस किया।

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युद्ध के बाद गांधारी ने अपनी पीड़ा और गुस्से में भगवान कृष्ण तक को युद्ध के परिणाम के लिए जिम्मेदार ठहराया और उन्हें श्राप दिया। यह घटना महाभारata की प्रमुख घटनाओं में गिनी जाती है, जिससे गांधारी के मन की वेदना झलकती है।

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युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र और गांधारी को सम्मान दिया, लेकिन उनके दिल का खालीपन कभी खत्म नहीं हुआ। अंततः उन्होंने वन में जाकर जीवन बिताया और वहां लगी आग में दुखद अंत पाया। गांधारी की कहानी महाभारat की सबसे दुखद महिला पात्रों में से एक बन गई।

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