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महाभारत: युद्ध जीतकर राजा बने युधिष्ठिर उनकी सरकार में कौन बने मंत्री और किसे बनाया युवराज

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महाभारत का 18 दिन का भयंकर युद्ध खत्म होने पर युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया। प्रारंभ में वे युद्ध के विनाश से विचलित थे और सिंहासन स्वीकार नहीं करना चाहते थे, लेकिन कृष्ण, भीष्म और भाइयों के समझाने पर उन्होंने राजतिलक स्वीकार किया।

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महाभारत युद्ध में 18 अक्षोहिणी सेना (कौरवों की 11, पांडवों की 7) में से अंत में केवल 18 योद्धा जीवित बचे। एक अक्षोहिणी में लगभग 1,09,350 सैनिक होते हैं, जिनमें पैदल, घुड़सवार, रथी और हाथी शामिल थे। इस भयानक जनहानि ने युधिष्ठिर को गहराई से प्रभावित किया।

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युधिष्ठिर का राजतिलक स्वर्ण सिंहासन पर हुआ। भीम और अर्जुन उनके समीप खड़े थे, कृष्ण और सात्यकि सामने, जबकि नकुल-सहदेव और कुंती सोने से सुसज्जित आसनों पर बैठे थे। इस अवसर पर शंखनाद, नगाड़े और विशेष पूजा-पाठ का आयोजन हुआ।

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राजा युधिष्ठिर ने भीम को युवराज घोषित किया, ताकि उनकी अनुपस्थिति में भी राज्य का संचालन सुचारू रहे। युवराज के रूप में भीम ने गृह मंत्री की तरह प्रशासनिक निर्णयों और मंत्रणाओं में सक्रिय भूमिका निभाई।

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विदुर को संधि-विग्रह और नीतिगत मामलों का भार दिया गया। संजय वित्त मंत्री बने, नकुल को रक्षा मंत्रालय सौंपा गया, और अर्जुन को विदेश व कानून मंत्री के साथ-साथ युद्ध के समय सेना की अगुवाई करने का दायित्व दिया गया।

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सहदेव को राजा की सुरक्षा की जिम्मेदारी मिली, जबकि पुरोहित धौम्य को धार्मिक कार्य और देव-ब्राह्मण सेवा का भार सौंपा गया। विदुर, संजय और युयुत्सु को धृतराष्ट्र से जुड़े कार्यों में सहयोग के लिए नियुक्त किया गया।

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धृतराष्ट्र की अनुमति से युधिष्ठिर ने भीम को दुर्योधन का भवन, अर्जुन को दुःशासन का, नकुल को दुर्मर्षण का और सहदेव को दुर्मुख का भवन दिया। इससे राज्य में शक्ति और संसाधनों का संतुलित वितरण हुआ।

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युधिष्ठिर ने धर्म और न्याय पर आधारित शासन स्थापित किया, छल-कपट का त्याग किया, सभी वर्गों को समान अधिकार दिए और शिक्षा के प्रसार को प्रोत्साहित किया। उनके 36 वर्षों के शासन में शांति, समृद्धि और सामाजिक सुधारों का विशेष महत्व रहा।

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