भोपाल। किसी भी शायर, कलाकार, फनकार को मिलने वाली सम्मान पट्टिका उसकी जिंदगी की असल कमाई और पूंजी होती है। जरूरी नहीं कि इसके साथ लाखों रुपए की सम्मान निधि भी हो। मप्र में पुरस्कार वितरण में की जाने वाली कंजूसी अगर पैसों की कमी या उसकी बचत के लिए है तो सरकारी महकमों को इन सम्मान राशियों को घटाकर या खत्म करके सम्मान और एजाज की व्यवस्था को बरकरार रखा जाना चाहिए। ताकि सम्मान के इंतजार में बैठे फनकार अपने जीवनकाल में ही इससे लाभान्वित हो सकें।
अंतरराष्ट्रीय शायर मंज़र भोपाली ने ये बात कही। मप्र संस्कृति विभाग के शिखर सम्मान को लेकर उन्होंने कहा कि अब तक जारी व्यवस्था को संशोधित कर इस एजाज को पांच साल में एक बार देने का फैसला कर लिया गया है। ये व्यवस्था प्रदेश के शायरों, कलाकारों, फ़नकारों के लिए निराशा की गर्त में जाने जैसा है। उन्होंने कहा कि अपने फन की दाद और सम्मान पाने के लिए कई लोग कतार में हैं। लेकिन अपनी बारी आने के लिए पांच साल का इंतजार करना उनके साथ नाइंसाफी से कम नहीं है। मंज़र ने कहा कि पिछले दो दशक से रुके हुए शिखर सम्मान को थोकबंद बांटकर संस्कृति विभाग ने अपनी जिम्मेदारी से दामन छुड़ा लिया है लेकिन हकीकत यह है कि अगले सम्मान की अवधि आने और अपनी बारी आने तक कई फ़नकारों को सांसें थामना मुश्किल हो सकता है।