5 सितंबर 1974 का दिन भारतीय राजनीति और समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा। इसी दिन ‘सामाजिक न्याय के प्रणेता’ और ‘बिहार लेनिन’ कहलाने वाले बाबू जगदेव प्रसाद शहीद हो गए। आज उनकी पुण्यतिथि पर पूरे बिहार में उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है। शोषितों और वंचितों की आवाज बुलंद करने वाले जगदेव प्रसाद ने जीवन भर समाजवाद और मानवतावाद की स्थापना के लिए संघर्ष किया। वे शोषित दल और अर्जक संघ से जुड़े और गरीबों, पिछड़ों, दलितों और वंचितों के अधिकार के लिए आंदोलन चलाते रहे। अरवल के कुर्था प्रखंड में 1974 में सत्याग्रह के दौरान पुलिस गोलीकांड में उनकी शहादत हो गई।
उनकी पुण्यतिथि पर बिहार के नेताओं ने भावभीनी श्रद्धांजलि दी। पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने उनके प्रसिद्ध नारे को याद करते हुए ट्वीट किया “दस का शासन नब्बे पर, नहीं चलेगा। सौ में नब्बे शोषित हैं, नब्बे भाग हमारा है।” मांझी ने उन्हें शोषित-वंचितों की आवाज और समतामूलक समाज के पैरोकार बताते हुए श्रद्धांजलि दी।
वहीं उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा – “पिछड़े-वंचितों के मसीहा, बिहार लेनिन जगदेव बाबू ने शोषित समाज की आवाज बुलंद करते हुए अपना बलिदान दिया।”
जीवन और संघर्ष
जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को बिहार के जहानाबाद जिले में हुआ था। वे अर्थशास्त्र और साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएट थे। छात्र जीवन से ही वे सामाजिक न्याय और समानता के आंदोलन से जुड़े। उन्होंने शोषित दल की स्थापना की, जो आगे चलकर शोषित समाज दल और अर्जक संघ बना। उनका लक्ष्य था – समाज में जातिगत भेदभाव मिटाना और शोषित-वंचित वर्ग को बराबरी का अधिकार दिलाना।
पुलिस गोली से हुई शहादत
5 सितंबर 1974 को वे अरवल जिले के कुर्था प्रखंड कार्यालय में सत्याग्रह कर रहे थे। इसी दौरान पुलिस ने गोली चला दी, जिसमें उनकी मौत हो गई। उनकी शहादत ने बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव लाया। वे ‘सम्मान और रोटी’ के लिए संघर्ष करते रहे और अंततः इस लड़ाई में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
‘बिहार लेनिन’ की पहचान
जगदेव प्रसाद को ‘बिहार का लेनिन’ कहा जाता है क्योंकि उन्होंने शोषित समाज के लिए वैसी ही वैचारिक लड़ाई लड़ी, जैसी लेनिन ने रूस में समाजवाद की स्थापना के लिए की थी। उनका जीवन सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में समानता की राह दिखाता है।





