Suicide :सिविल जज बनने का सपना टूटा तो महिला ने समाप्त कर ली अपनी जीवन लीला

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ग्वालियर, अतुल सक्सेना। भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम (Former President of India APJ Abdul Kalam) ने कहा था कि सपने (Dreams) वह नहीं जो हम सोते वक्त देखतें है, सपने तो वो होते हैं जो हमें सोने ही ना दें। लेकिन कभी-कभी कुछ सपने एक इंसान के जीवन में इतने अहम बन जाते हैं कि उसके टूट जाने से इंसान भी टूट जाता है। एक ऐसा ही मामला ग्वालियर (Gwalior) से आया है, जहां एक महिला ने सिविल जज (Civil Judge) की परीक्षा में सफल नहीं होने के कारण अपनी जान दे दी (Suicide)।

बुधवार को दोपहर में छत्तीसगढ़ सिविल जज परीक्षा का परिणाम घोषित किया गया था, जिसमें 26 साल की मेघा यादव का चयन नहीं हुआ, इससे वो इतनी हताश हो गई कि रात को उसने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी (Suicide)। घटना की जानकारी लगते ही मौके पर पहुंची पुलिस ने शव को बरामद कर पोस्टमार्टम (Postmortem) के लिए भेज दिया, वही पलस पूरे मामले की जांच में जुट गई है।


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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।