अपने कार्यों में लाएं सकारात्मकता, जीवन में मिलेगी सफलता – प्रवीण कक्कड़

Kashish Trivedi
Published on -

भोपाल, प्रवीण कक्कड़। आपने एक शब्‍द सुना होगा सकारात्‍मक (positivity ) सोच या पॉजीटिव थिंकिंग (Positive thinking)। छात्र हो या खिलाड़ी (player), नौकरीपेशा हो या व्‍यापारी (bussinessman) हर कोई अपने जीवन में सकारात्‍मक सोच लाना चाहता है, दूसरी ओर कोच हो या शिक्षक हर कोई अपने अनुयायी को सकारात्‍मक सोच की घुट्टी पिलाना चाहता है लेकिन इस प्रक्रिया (process) में हम थोड़ी सी गलती करते हैं। सकारात्‍मक सोच का अर्थ है अपने काम को सकारात्‍मक बनाना न की केवल नतीजों के सकारात्‍मक सपनों में खो जाना।

हम अपने कर्म, लगन और व्‍यवहार को सकारात्‍मक करने की जगह केवल मन चाहे नतीजे के सकारात्‍मक सपने पर फोकस करने लगते हैं और सोचतें हैं कि यह हमारी पॉजीटिव थिंकिंग हैं। ऐसे में हमारे सफलता के प्रयास में कमी आ जाती है और हमारे सपनों का महल गिर जाता है, फिर हम टूटने लगते हैं। नकारात्‍मकता हम पर हावी हो जाती है। ऐसे में जरूरत है कि हम सकारात्‍मकता के वास्‍तविक अर्थ को समझें। सकारात्‍मक सोच यह है कि हम अपनी काबिलियत पर विश्‍वास करें, लगन से काम में जुटें और पूरी ऊर्जा से काम को पूरा करें। फिर नतीजे अपने आप सकारात्मक हो जाएंगे।

 MP : सीएम शिवराज की बेहतर रणनीति, आम जनता को मिलेगा लाभ, 25 मार्च तक पूरा करें यह काम 

जीवन में सकारात्‍मक सोच का होना बहुत जरूरी है। यह भी सच है कि सकारात्‍मक सोच वाले व्‍यक्ति तेजी से आगे बढ़ते हैं व लक्ष्‍य को हासिल करते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि सकारात्‍मक सोच है क्‍या… कुछ लोग कहते हैं जो मैं जीवन में जो पाना चाहता हूं वह मुझे मिल जाएगा, कुछ कहते हैं जैसा में सोच रहा हूं मेरे साथ वैसा ही होगा या कुछ कहते हैं मेरे साथ जीवन में कुछ बुरा हो ही नहीं सकता…अगर इस तरह के विचारों को आप सकारात्‍मक सोच मान रहे हैं तो मेरे अनुसार आप गलत हैं। केवल नतीजों के हसीन सपनों को लेकर खुशफहमी पाल लेना सकारात्‍मकता नहीं है। सकारात्‍मक सोच का सही अर्थ है अपने प्रयासों को लेकर सकारात्‍मक होना, ऊर्जावान होना और लगनशील होना। जीवन में आसपास के हालातों से असंतुष्‍ट नहीं होना और अपना 100 प्रतिशन देकर किसी काम में जोश व जूनून के साथ जुटे रहना भी सकारात्‍मक सोच है।

आप सभी ने कभी न कभी क्रिकेट जरूर खेला होगा। जब हम किसी बॉल को मिस कर जाते हैं तो क्‍या मैदान छोड़कर चले जाते हैं, नहीं… हम अगली बॉल का इंतजार करते हैं और उस पर शॉट लगाने के लिए फोकस होते हैं। ऐसे ही अगर किसी बॉल पर छक्‍का मार देते हैं तो क्‍या नाचते हुए मैदान से बाहर चले जाते हैं, नहीं ना, फिर अगली बॉल का इंतजार करते हैं और बेहतर शॉट लगाने की योजना बनाते हैं।

जीवन के क्रिकेट में जब तक हम जीवित हैं तब तक हम कभी आऊट नहीं होते न ही कभी गेंद खत्‍म होती हैं, सफलता रूपी रन बनाने के लिए अवसर रूपी गेंद लगातार आती रहती हैं। जीवन में बस इस एप्रोच की जरूरत है कि कोई अवसर छूट गया तो उसका अफसोस न करें, न ही जीवन से हार मानें, बल्कि अगले अवसर पर फोकस करें। इसी तरह अगर कोई सफलता मिल गई तो उसकी आत्‍ममुग्‍धता में खोएं नहीं बल्कि अगली सफलता के लिए रास्‍ता तैयार करने में जुट जाएं… यही सकारात्‍मकता है।

अगर आप छात्र हैं और आपने लक्ष्‍य बनाया कि मुझे 95 प्रतिशत अंक हासिल करना है लेकिन आप लक्ष्‍य से पिछड़ गए तो हतोत्‍साहित न हों क्‍योंकि जिंदगी की गेंदबाजी जारी है, अगली गेंद पर इससे बेहतर प्रदर्शन का अवसर खुला है। अगर आप नौकरी के लिए इंटरव्‍यू देने गए हैं तो यह मत सोचिए कि नौकरी मुझे मिलेगी या नहीं, बल्कि यह सोचिए कि इस संस्‍थान को आगे बढ़ाने के लिए मैं क्‍या-क्‍या कर सकता हूं। अपना 100 प्रतिशत कैसे दे सकता हूं। यह उत्‍साह आपके व्‍यवहार में नजर आएगा और नौकरी आपको जरूर मिलेगी। स्‍वयं को काबिल बनाने में सकारात्‍मक सोच रखिए, नतीजे खुद-ब-खुद ही सकारात्‍म%A


About Author
Kashish Trivedi

Kashish Trivedi

Other Latest News