भोपाल।
सुप्रीम कोर्ट ने भले ही सालों पुराना अयोध्या विवाद सुलझा दिया हो लेकिन अब भी राजनैतिक दलों के बीच राममंदिर निर्माण को लेकर सियासत जारी है।अब मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पीएम मोदी को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने यूपी की योगी सरकार द्वारा अयोध्या में सरयू तट पर भगवान राम की 251 मीटर ऊंची कांसे की मूर्ति बनाने को लेकर सवाल खडे किए है और राममंदिर की जिम्मेदारी रामलय ट्रस्ट को देनी की बात कही है।वही उन्होंने ट्रस्ट के गठन और इसमें किसी प्रमाणित शंकराचार्य को शामिल ना करने पर सवाल उठाए हैं। साथ ही कहा है एक धार्मिक ट्रस्ट में अपराधी और सरकारी लोगों का क्या काम।
दिग्विजय ने पत्र में लिखा है कि योगी आदित्यनाथ ने एक भव्य मूर्ति बनाने की घोषणा की है, लेकिन वह सनातन धर्म की परंपराओं के विपरित है।जो मंदिर में दैनिक सेवाल होती है वह २५१फीट की कैसे हो सकती है।इस पर चिड़िया आदि पक्षी गंदगी कर सकती है, इस पर पुर्नविचार करना चाहिए। वही उन्होंने मांग की है कि जब पूर्व में ही भगवान श्री रामचंद्रजी के मंदिर निर्माण के लिए रामालय ट्रस्ट मौजूद है तो पृथक से ट्रस्ट बनाने का कोई औचित्य नहीं है। जो नया ट्रस्ट गठित किया गया है उसमें किसी भी प्रमाणित जगतगुरु शंकराचार्य को स्थान नहीं दिया गया है। श्री वासुदेवानंद जी जिन्हें शंकराचार्य के नाम से मनोनीत किया गया है वह न्यायपालिका द्वारा पृथक किए गए हैं। उनके बारे में द्वारका और जोशीमठ के शंकराचार्य जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद ने अपने वक्तव्य में जो कहा है वह संलग्न है। देश में सनातन धर्म के पांच शंकराचार्य के पीठ हैं. उनमें से ही ट्रस्ट का अध्यक्ष बनाना उपयुक्त होता, जो नहीं हुआ। राम मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी रामलय ट्रस्ट को दी जानी चाहिए। उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया है कि वे इसके लिए एक पैसा भी नही लेंगे।
वही पत्र के माध्यम से दिग्विजय ने आरएसएस पर भी हमला बोला है। दिग्विजय ने लिखा है कि आरएसएस राम को भगवान का अवतार नही मानती और ही ना उन्हें मर्यादा पुरषोत्तम मानती है।सनातन धर्म में राम भगवान के अवतार रहे है और करोडों लोगों का इस पर विश्वास है।वही उन्होंने 28 सालों से लोगों द्वारा राममंदिर निर्माण के लिए किए गए दान का ब्याज देने की भी मांग की है, ताकी उस पैसे का मंदिर में इस्तेमाल किया जा सके।