Selfie ने ली एक और जान, फोटो के चक्कर में 12 वर्षीय किशोरी ने लगाई फांसी

Gaurav Sharma
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उमंग सिंघार

इंदौर, आकाश धोलपुरे। इंदौर में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जिसमें सेल्फी (Selfie) के चक्कर में एक 12 साल की किशोरी की जान चली (lost Life) गई। जिस मोबाईल (Mobile) को हम सुविधा और जरूरत की दृष्टि से अपने जीवन का अहम हिस्सा बना चुके है, उसी मोबाईल के चक्कर में कई बार लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। कुछ ऐसा ही मामला इंदौर (Indore) से सामने आया है जहां एक 12 वर्षीय किशोरी की जान मोबाईल से सेल्फी (Selfie) खींचने के चक्कर मे चली गई।

मामला सेल्फी विथ फांसी (Selfie With Phansi) का है। घटना इंदौर (Indore) के एरोड्रम थाना क्षेत्र की है, जहां के वैष्णवी नगर में रहने वाली 12 साल की बच्ची की सेल्फी (Selfie) के चक्कर में जान चली गई। बच्ची घर पर कुर्सी पर खड़ी होकर फांसी लगाकर सेल्फी ले रही थी। इस दौरान बैलेंस बिगड़ा और कुर्सी सरक गई, जिससे फंदा गले में तेजी से कस गया और मासूम की मौत हो गई।

जानकारी के मुताबिक माँ वैष्णो देवी नगर में रहने वाली 12 साल की आयुषी पिता अर्जुन सोलंकी अपने कमरे में थी। काफी देर तक उसके बाहर नहीं आने पर परिजन जब उसके कमरे में गए तो वह फंदे पर लटकी मिली। बेटी को फंदे पर देख परिजन बदहवास हो गए। पड़ोसियों की मदद से बच्ची को नीचे उतारा गया, लेकिन तब तक उसकी सांसें थम चुकी थीं।

घटना की सूचना मिलते ही पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल पहुंचाया। पुलिस के अनुसार फांसी लगाने के कारणों का तो पता नहीं चल पाया है। जांच अधिकारी मनमोहन ठाकुर ने बताया कि प्रारंभिक तौर पर यह बात सामने आई है कि बच्ची ने सेल्फी के लिए फंदा गले में डाला था। इस दौरान कुर्सी सरक गई, जिस कारण वह फंदे पर लटक गई। पुलिस मामले में जांच के बाद ही सही कारण पता चलने की बात कह रही है।


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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है।इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।

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