भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। पिछले साल मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार (shivraj governent) ने सहकारी सोसायटी अधिनियम 1960 (Co-operative Societies Act 1960) में संशोधन (amendment) का अध्यादेश जारी किया था। इसके मुताबिक सहकारी संस्था में सांसद और विधायक अध्यक्ष बनाया जा सके। अब एक बार फिर सहकारी अधिनियम में अध्यादेश के माध्यम से संशोधन की तैयारी की जा रही है। सहकारी संस्थाओं में विभागीय मंत्री चुनाव न होने की सूरत में प्रशासक नियुक्त किया जा सके। इसके लिए सरकार सहकारी अधिनियम में संशोधन करने जा रही है।
दरअसल सहकारी अधिनियम 1960 के संशोधन के मुताबिक सहकारी संस्था में सांसद और विधायक अध्यक्ष बनाए जा सकेंगे। हालांकि पिछले साल हुए सहकारी अधिनियम संशोधन में प्रशासक नियुक्त करने की दिशा में कोई संशोधन नहीं किया गया था। जिसके बाद एक बार फिर शिवराज सरकार इस नियम के लिए अधिनियम में संशोधन की तैयारी कर रही है।
इतना ही नहीं अभी के नियम के मुताबिक प्रशासक सिर्फ संचालक बनने की पात्रता रखने वाला व्यक्ति तृतीय श्रेणी अधिकारी में आते हैं। इसमें विभागीय मंत्री शामिल नहीं है। वहीं संशोधन के लिए प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा गया है। इसकी मंजूरी मिलने के बाद कैबिनेट के माध्यम से इसे विधानसभा के बजट सत्र में प्रस्तुत किया जा सकता है।
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बता दें कि पिछले साल इस अधिनियम में संशोधन अध्यादेश जारी किया गया था। केंद्रीय संस्था में अगर अध्यक्ष नहीं होते हैं तो पदस्थ प्रशासक को ही सलाह देने के लिए एक समिति का गठन किया जाएगा। जिसमें कुल 5 सदस्य होंगे ऐसे देशों में 3 सदस्य संचालक मंडल के सदस्य चुने जाने की पात्रता रखते हैं। इनके अलावा एक वित्त विभाग और एक पंजीयन सहकारिता के प्रतिनिधि समिति में शामिल रहेंगे।
गौरतलब हो कि सरकारी अधिनियम में एमपी-एमएलए के सहकारी संस्थानों के अध्यक्ष बनने पर प्रतिबंध था। जिसके बाद इस अधिनियम में संशोधन कर एक विकल्प तैयार किया गया। सहकारी संस्थाओं के अध्यक्ष का चुनाव ना होने की स्थिति में एमपी एमएलए को इन संस्थाओं का प्रतिनिधित्व दिया जाता है।