Indian Coffee House Success Story : इंडियन कॉफी हाउस पिछले 61 सालों से देश के विभिन्न हिस्सों में कॉफी आउटलेट्स चला रही है। ब्रिटिश राज के दौरान साल 1940 के दशक में इंडिया कॉफी हाउस का संचालन कॉफी बोर्ड ने शुरू किया था। जब देश स्वतंत्र हुआ, तो साल 1950 के दशक में इंडियन कॉफी हाउस को बंद कर दिया गया और कॉफी बोर्ड ने इसमें कार्यरत लोगों को नौकरी से निकाल दिया। तब कॉफी हाउस के कर्मचारियों ने कम्युनिस्ट नेता ए के गोपालन के नेतृत्व में एक सोसाइटी बनाई। जिसके बाद उन्होंने कॉफी हाउस की बागडोर अपने हाथों में ले ली। इस सोसाइटी ने तब से लेकर अब तक इंडियन कॉफी हाउस को सफलतापूर्वक चलाया है।
बदला नाम
बता दें कि अब इसका नाम इंडियन कॉफी हाउस हो गया है। पहली बार इंडियन कॉफी वर्कर कोऑपरेटिव सोसाइटी की स्थापना 19 अगस्त 1957 को बंगलुरु में की गई थी। वहीं, पहला इंडियन कॉफी हाउस नई दिल्ली में 27 अक्टूबर 1957 को खुला। इसके बाद इंडियन कॉफी हाउस का विस्तार देश के तमाम प्रमुख शहरों में किया गया। केरल में सबसे ज्यादा इंडियन कॉफी हाउस हैं। देश भर में इसके 13 कोऑपरेटिव सोसाइटियां हैं, जो कॉफी हाउस चलाती हैं। इन कॉफी हाउसों की देखरेख कर्मचारियों द्वारा चुनी गई प्रबंधन समिति करती है। 1950 के दशक में दिल्ली में एक कप कॉफी का मूल्य एक आना था, लेकिन आज इसका मूल्य 25 रुपये प्रति कप हो गया है। यहां आपको 300 से लेकर 350 तक फूड आइटम्स मिल जाएंगे, जोकि आपके बजट में मिलेगा।
महिलाओं को मिला काम
वहीं, कॉफी हाउस ने अपने इतिहास में पहली बार महिलाओं को काम पर रखा है। जिन्हें कन्नूर और कोझीकोड के आउटलेट्स में अपॉइंट किया गया है। बता दें कि इससे पहले यानी स्थापना के बाद से अब तक इसमें केवल पुरुष कर्मचारी ही काम करते थे। जिसे लेकर इंडियन कॉफी वर्कर्स कोऑपरेटिव सोसायटी कन्नूर के अध्यक्ष पीवी बालाकृष्णन का कहना है कि दुनिया तेजी से बदल रही है और महिलाएं शीर्ष पेशों में जगह बना रही हैं। ऐसे में समय आ गया है कि कॉफी हाउस उनके लिए अपने दरवाजे खोले।