Wheat Prices in India : देश में महंगाई के चलते जनता की परेशानियां पहले से ही बढ़ी हुई हैं और अब गेहूं की बढ़ती कीमतों ने स्थिति को और गंभीर कर दिया है। हालांकि गेहूं की कीमतों में आई तेजी ने सरकार के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर दी है, जिसे देखते हुए सरकार ने कई उपायों पर विचार करना शुरू कर दिया है। दरअसल इसमें आयात शुल्क को कम करने का महत्वपूर्ण कदम भी शामिल है।
कीमतों को नियंत्रित करने के उपाय:
दरअसल मिंट की एक रिपोर्ट की माने तो, अब सरकार द्वारा गेहूं के आयात को प्रोत्साहित करने के लिए आयात शुल्क को घटाने का विचार किया जा रहा है। वहीं इसके साथ ही, घरेलू बाजार में गेहूं की आपूर्ति बढ़ाने और कीमतों को स्थिर रखने के उद्देश्य से भंडारण सीमा निर्धारित करने और ओपन मार्केट ऑपरेशन सेल शुरू करने पर भी विचार किया जा रहा है।
आयात के समर्थन में व्यापारी:
जानकारी के अनुसार गेहूं के व्यापारियों द्वारा लंबे समय से आयात शुल्क को कम करने को लेकर मांग की जा रही हैं। हालांकि रूस में बड़ी मात्रा में हुए उत्पादन और स्टॉक के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतों में कमी दिखाई दे रही हैं। जबकि ट्रेडर्स का मानना है कि भारत को इस अवसर का फायदा उठाना चाहिए और आयात को बढ़ावा देना चाहिए ताकि घरेलू बाजार में आपूर्ति बढ़ सके और कीमतों को नियंत्रित किया जा सके।
किसानों का संभावित विरोध:
हालांकि, आयात के इस निर्णय का देश के किसान विरोध कर सकते हैं। दरअसल किसान संगठनों का मानना रहा है कि आयात से घरेलू उपज की कीमतें प्रभावित होती हैं और किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और वे अपनी फसल को सही दाम पर बेचने में असमर्थ हो सकते हैं। इसलिए, आयात को लेकर किसानों की नाराजगी सामने आ सकती है।
आपको जानकारी दे दें कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है और यहां गेहूं की खपत भी बहुत अधिक है। हालांकि, बीते रबी सीजन में उत्पादन कम हुआ था, जिससे सरकारी खरीद प्रभावित हुई है। मुफ्त खाद्यान्न योजना के चलते सरकारी भंडार में कमी आई है, जिससे आयात की आवश्यकता बढ़ गई है। वर्तमान फसल वर्ष में भी उत्पादन 112.9 मिलियन टन रहने का अनुमान है, जो पिछले साल के स्तर के करीब है। पिछले साल उत्पादन में 3.8 मिलियन टन की गिरावट आई थी।