Ghotul System : हमारे देश में अनेकों परपराएं हैं जो अपने आप में काफी अनोखी है। यहां हर राज्य की अपनी अगल संस्कृति है, जिसका अपना अगल ही रंग और रुप होता है। इसी कड़ी में आज हम आपको छत्तीसगढ़ राज्य की ऐसी परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर आप सभी को आश्चर्य होगा। दरअसल, हम छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में माड़िया जाति की परंपरा घोटुल परंपरा के बारे में बात कर रहे हैं, जहां की रोचक संस्कृति और रिवाज उत्तर भारत में अपनी विविधता के लिए प्रसिद्ध है। आइए विस्तार से जानें यहां…
क्या है घोटुल परंपरा?
दरअसल, घोटुल एक विशेष आदिवासी परंपरा है, जिसमें विवाहित पारिवारिक जोड़े एकत्र होते हैं और एक नए झोपड़ी का निर्माण करते हैं। इस दौरान घोटु के लिए एक बड़ी-सी कुटिया बनाई जाती है। जिसे रंग-बिरंगे पैटर्न और आदिवासी शैली से सजाया जाता है। जिसके लिए मिट्टी, लकड़ी, तख्तियां और बारूद का उपयोग होता है। यह एक प्रकार का सामूहिक आयोजन होता है, जहां लोग अपनी भाषा, गाने, नृत्य और परंपरागत संगीत के साथ रिवाजों का आनंद लेते हैं।
साथ रहते हैं लड़का-लड़की
घोटुल एक ऐसी सामुदायिक अधिवेशन है जो बस्तर के मुरिया और माड़िया आदिवासियों के बीच बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर मिट्टी की बनी झोपड़ी में आदिवासी समुदाय की युवक-युवतियों को बुजुर्ग व्यक्तियों की देख-रेख में एकत्रित होते हैं। साथ ही, एक दूसरे से मिलने और जानने-समझने का अवसर मिलता है। घोटुल में भाग लेने वाली युवतियों को “मोतियारी” और लड़कों को “छेलिक” कहा जाता है। कई इलाकों में लड़के-लड़कियां घोटुल में ही सोते हैं। वहीं, कुछ इलाकों में लड़के-लड़कियां दिनभर साथ रहने के बाद अपने अपने घरों में सोते हैं।
उम्र सीमा होती है निर्धारित
घोटुल में शामिल होने के लिए लड़कों और लड़कियों के लिए निश्चित उम्र सीमा निर्धारित की जाती है। यहां लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष होती है। घोटुल में रहने वाले युवक-युवतियों को कपल बनने से पहले अपने आप को एक दूसरे के साथ सहज महसूस करने के लिए सात दिनों तक साथ रहते हैं। इस दौरान वे एक-दूसरे के समूह के सदस्यों के साथ समय बिताते हैं।
(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना अलग-अलग जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)