नागपुर, डेस्क रिपोर्ट। देश में किसी भी कोरोना वॉरियर (corona warrior) को इज्जत और सम्मान मिलना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश (unfortunately) सामने आई एक घटना ने इस कथन को पूरी तरह से झुठला दिया है। दो महीना पहले देश में कोरोना से बनी विकट और भयावह परिस्थितियों (scary condtions) से हम सब वाकिफ हैं। उस समय जगह-जगह छोटे- बड़े स्तर पर काम कर रहे ये कोरोना वॉरियर्स ही थे जो हम सबमें उम्मीद की किरण जगाए हुए थे। ऐसे ही एक कोरोना वॉरियर थे नागपुर (nagpur) के चंदन निमजे। चंदन ने उस वक़्त करीब 1300 कोरोना संक्रमितों के शवों के अंतिम संस्कार (last rites) करने में मदद की थी। लेकिन विडंबना है कि अब जब उनको मदद की आवश्यकता पड़ी तब उनकी सहायता के लिए एक हाथ भी आगे नहीं बढ़ा।
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67 वर्षीय चंदन निमजे ने कोरोना काल में 1300 शवों के अंतिम संस्कार कराने में मदद की थी। उनके इस परोपकार के लिए उन्हें एक माह पूर्व कोरोना वॉरियर ही नहीं घोषित किया गया था बल्कि शहर के महापौर दयाशंकर तिवारी ने उन्हें सम्मानित भी किया था। उसके बाद मई की शुरआत में वे स्वयं कोरोना संक्रमित हो गए थे।
कोरोना संक्रमित होने के बाद उन्हें सरकारी अस्पताल में एक बेड की आवश्यकता पड़ी। वे इसके लिए लगातार प्रयास करते रहे और इधर-उधर मदद की गुहार भी लगाई लेकिन अफसोस इस कोरोना वॉरियर की मदद के लिए एक हाथ भी आगे नहीं बढ़ा।
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इसके बाद परिवार वालों ने किसी तरीके से प्राइवेट अस्पताल में भारी बिलों के बीच चंदन को भर्ती करवाया। लेकिन दुर्भाग्यवश बेड मिलने में देरी होने से और दवाइयों के अभाव में इस परोपकारी आत्मा ने 26 मई को देह त्याग कर दिया। और समाज के अस्तित्व के ऊपर एक प्रश्न चिह्न छोड़ दिया।