उस रात और फिर उसके बाद जानें कितने दिन-रातों के गवाह रहें है हजारों लोग। दर्द से भरे जानें कितने वाकये हैं जो लगातार सामने आते रहे हैं। आज हम आपके साथ कवि, आरजे, ब्लॉगर और स्टोरी टेलर युनूस ख़ान का अनुभव साझा कर रहे हैं। युनूस ख़ान फिलहाल मुंबई में रहते हैं, लेकिन उस रात वे भोपाल में ही थे और आज भी उस खौफ़नाक मंज़र को भुला नहीं पाए हैं। उन्होने अपनी फेसबुक वॉल पर भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ी दुख भरी याद शेयर की है।
वो दर्दभरी रात, जो अब भी गुज़री नहीं
“दो दिसंबर की रात जब सोए, तो अंदाजा नहीं था कि अचानक आधी रात को दुनिया बदल जाएगी। तकरीबन किशोर वय… वो वक्त था साइकिल, क्रिकेट, गिल्ली डंडा, कॉमिक्स और सपनों की दुनिया का। तब जल्दी यानी रात नौ बजे सुला दिया जाता था, सुबह स्कूल जाना होता था।
अचानक रात को यूं लगा जैसे आंखों में वैसी जलन है जैसी लकड़ी जलने से हुए धुंए से होती है। सबको यही तकलीफ थी। पापा ने दरवाजे खोलकर बाहर देखा तो भोपाल की वो गली बदहवास थी। सबकी आंखों में जलन थी। तब पता नहीं था कि कोई मुजफ्फर अली हैं जिन्होंने कुछ बरस पहले “गमन” बनाई थी और उसमें शहरयार साहब ने लिखा था “सीने में जलन आंखों में तूफान सा क्यों है”। बहरहाल, आंखों की ये जलन आधी रात के पर दम घुटने में बदल गई। और लोग भागने लगे।
सबके पास गाड़ियां तो छोड़िए स्कूटर भी नहीं होते थे। ट्रकों में, टेंपो में भागे। जो रास्ता सूझा वहां भागे। कुछ मौत से दूर भागे तो कुछ मौत की तरफ भागे। उफ्फ.. आज सोचता हूं तो लगता है मानो वो हॉलीवुड की किसी फिल्म का नज़ारा रहा होगा। ऐसी फिल्में जिनमें दुनिया खत्म होने लगती है और सब भागते हैं। शायद इसलिए मुझे ऐसी फिल्में कभी नहीं भाईं।
जो मौत की तरफ भागे वो लौटकर नहीं आए।
उस रात उड़ती उड़ती खबर मिली कि किसी फैक्ट्री में गैस लीक हो गई है, जहरीली गैस है। तब संचार के साधन थे कहां। घर पर फोन तक ना होता था। अगली सुबह तक खांसते, आंखों को पानी से धोते और इस कहर को बर्दाश्त करते रहे सब। पता चला कई लोग मारे गए इस कहर में।
अगले दिन साइकिल चलाते हुए मैं जेल पहाड़ी के पास कब्रिस्तान के पास से गुजर रहा था। भयंकर भीड़ देखी, थोड़ा उस तरफ चला गया। जो देखा, आंखों के आगे सदा कायम रहेगा। मुहल्ले के लोग लंबे लंबे गड्ढे खोद रहे थे। ताकि समूह में दफनाया जा सके। मैं दहशत में वहां से भागा। घर में किसी को आज तक नहीं बताया कि क्या मंजर देख कर आ रहा हूं। रास्ते में रोता रहा।
आज चालीस बरस हुए। कुछ बरस बाद भोपाल छूट गया।
भोपालवासियों ने इंसाफ की लंबी लड़ाई लड़ी। जो लोग चले गए उन्हें कोई लौटा नहीं सकता। जो घर उजड़ गए उन्हें कोई बसा नहीं सका। उद्योगों को लेकर कोई सुरक्षा के सबक हमने नहीं सीखे। यकीन मानिए हादसों के बाद उनके उपाय खोजने की आदत के रहते हम हर जगह अगले हादसे के इंतजार में होते हैं। हादसे कभी नहीं रुकते। उनका पुख्ता इंतजाम अमूमन नहीं होता। मुआवजे देकर फर्ज़ पूरा करना हमेशा शर्मनाक लगता है। हर एक जान कीमती समझी जाए, दुनिया के कई देशों में समझी जाती है।
हर साल जब ये तारीख आती है तो सिहर उठता हूं।
जाने कब, कहां कैसे कोई अगला हादसा उठ खड़ा होगा।
और कोई और चालीस बरस बाद इस तरह की पोस्ट लिख रहा होगा।”
(लेखक कवि युनूस ख़ान की फेसबुक वॉल से साभार)