सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों के लिए जरूरी खबर, पदोन्नति में आरक्षण पर ताजा अपडेट, जानें कब होगी अगली सुनवाई

Pooja Khodani
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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए काम की खबर है।कर्मचारियों-अधिकारियों को पदोन्नति में आरक्षण (MP Reservation in Promotion) के लिए अभी और इंतजार करना पड़ेगा। पदोन्नति में आरक्षण मामले की सुनवाई एक बार फिर आगे बढ़ गई है। सुप्रीम कोर्ट अब दो सप्ताह बाद सुनवाई करेगा। उम्मीद है कि अक्टूबर से पहले सालों से लंबित पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुलझ जाएगा।इससे पहले दो बार तारीख आगे बढ़ाई गई है।

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राज्य के कर्मचारियों और अधिकारियों के पदोन्नति में आरक्षण (MP Reservation in Promotion) पर 6 साल से रोक लगी है, भारतीय सेवा और राज्य सेवा के कुछ अधिकारियों सहित न्यायालय से फैसला लाने वालों को छोड़कर किसी को भी कर्मचारी-अधिकारी को प्रमोशन नहीं दिया गया है।कर्मचारी इस मामले का हल जल्द चाहते हैं। क्योंकि उन्हें सेवानिवृत्ति से पहले पदोन्नति नहीं मिल पा रही है।आरक्षित व अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी राज्य सरकार से कोर्ट के निर्णय के अधीन पदोन्नति शुरू करने का आग्रह भी कई बार कर चुके हैं, लेकिन अबतक कोई हल नहीं निकला।

वही फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और सुनवाई चल रही है।  कयास लगाए जा रहे थे कि पहले एमपी की सुनवाई होगी, इसके लिए सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक कल्याण संस्था (स्पीक) ने भी मामले में जल्द सुनवाई का आवेदन भी लगाया था, लेकिन  मंगलवार को अनुसूचित जाति एवं जनजाति संगठन कर्नाटक की याचिका, बिहार सरकार की प्रकरण वापसी की अपील और भारत सरकार के अवमानना संबंधी प्रकरण की सुनवाई हुई और फिर सुप्रीम कोर्ट ने  तारीख  दो हफ्ते और आगे बढ़ा दी।

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बता दे कि मध्य प्रदेश में पिछले 6 साल यानि 2016 से कर्मचारियों की पदोन्नति में आरक्षण का मामला लंबित है।इस अवधि में 70000 से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं और करीब 36000 को पदोन्नति नहीं मिली है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को ‘मप्र लोक सेवा (पदोन्न्ति) नियम 2002″ को खारिज कर दिया था, जिसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने मई 2016 में यथास्थिति (स्टेटस-को) रखने के निर्देश दिए हैं, तब से पदोन्नति पर रोक लगी है।


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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