भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर से भी उच्च माना गया है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के सदृश देखा जाता है। गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) के अवसर हम हम अपने जीवन में आए सभी गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। मान्यतानुसार आषाढ़ की पूर्णिमा के दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था और इसीलिए इस दिन गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। इस साल गुरु पूर्णिमा 13 जुलाई बुधवार को पड़ रही है। आईये जानते हैं इस दिन किस तरह हम अपने गुरुजनों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं।
इस साल ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गुरु पूर्णिमा पर कई ग्रहों का शुभ संयोग बन रहा है। गुरु, मंगल, बुध और शनि ग्रह के शुभ संयोग से रुचक, शश, हंस और भद्र नामक राजयोग का निर्माण हो रहा है। ग्रहों के राजा सूर्यदेव मिथुन राशि में हैं और बुध के साथ युति बनाए हुए हैं। गुरु पूर्णिमा पर श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान करते हैं। इसके अलावा अन्य पवित्र नदियों में डुबकी लगाकर दान करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है। जिनपर गुरुजनों का आशीष रहता है उनकी कुंडली से गुरु दोष समाप्त हो जाता है। इस बार 12 जुलाई को रात्रि 2:35 बजे गुरु पूर्णिमा का प्रवेश हो रहा है इसलिए उदया तिथि में 13 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। पूर्णिमा तिथि 13 जुलाई को रात्रि के 12:06 बजे तक है।
अगर आप भी इस विशेष अवसर पर शुभकामनाएं देना चाहते हैं तो इन श्लोक के द्वारा अपने उद्गार व्यक्त कर सकते हैं-
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
अर्थात:
गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है। गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है, उन सद्गुरु को प्रणाम।
विनयफलं शुश्रूषा गुरुशुश्रूषाफलं श्रुतं ज्ञानम्।
ज्ञानस्य फलं विरतिः विरतिफलं चाश्रवनिरोधः।।
अर्थात:
विनय का फल सेवा है, गुरुसेवा का फल ज्ञान है, ज्ञान का फल विरक्ति (स्थायित्व) है,
और विरक्ति का फल आश्रवनिरोध (बंधनमुक्ति तथा मोक्ष) है।
धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते।।
अर्थात:
धर्म को जाननेवाले, धर्म मुताबिक आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं।
धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते।।
अर्थात:
धर्म को जाननेवाले, धर्म मुताबिक आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं।
किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च।
दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम्।।
अर्थात:
बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
अर्थात:
उस महान गुरु को अभिवादन, जिसने उस अवस्था का साक्षात्कार करना संभव किया जो पूरे ब्रम्हांड में व्याप्त है, सभी जीवित और मृत्य में।
गुरौ न प्राप्यते यत्तन्नान्यत्रापि हि लभ्यते।
गुरुप्रसादात सर्वं तु प्राप्नोत्येव न संशयः।।
अर्थात:
गुरु के द्वारा जो प्राप्त नहीं होता, वह अन्यत्र भी नहीं मिलता। गुरु कृपा से निस्संदेह (मनुष्य) सभी कुछ प्राप्त कर ही लेता है।
विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम्।
शिक्षकस्य गुणाः सप्त सचेतस्त्वं प्रसन्नता।।
अर्थात:
ज्ञानवान, निपुणता, विनम्रता, पुण्यात्मा, मनन चिंतन हमेशा सचेत और प्रसन्न रहना ये साथ शिक्षक के गुण है।