बेंगलुरु, डेस्क रिपोर्ट। नई पेंशन नीति और NPS के तहत ही पारिवारिक पेंशन (family pension) को लेकर हाई कोर्ट (high court) ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। दरअसल एक कर्मचारी (employees) के परिवार और आश्रितों को पारिवारिक पेंशन देने के लिए नई योजना के तहत पेंशन (pension) देने की मांग की जा रही थी। हालांकि अदालत ने दलील में पाया कि नई पेंशन योजना लागू होने से काफी पहले कर्मचारी की मृत्यु हो गई है और नई पेंशन योजना में उसका कोई भी योगदान नहीं है।
ऐसी स्थिति में कर्मचारियों के आश्रितों को पारिवारिक पेंशन और NPS योजना के तहत पेंशन का लाभ नहीं दिया जा सकता है। इसके लिए पूर्व में शुरू की गई पेंशन योजना ही कर्मचारी के लिए लागू रहेगी। हाईकोर्ट ने कहा है कि अदालत भावुक होकर फैसला नहीं सुना सकती। उच्च न्यायालय की धारवाड़ पीठ ने कहा है कि जब तक एक मजबूत मामला नहीं बनता है, नए पेंशन नियमन के तहत बढ़ा हुआ लाभ पूर्वव्यापी रूप से नहीं दिया जा सकता है। जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और पी कृष्णा भट की खंडपीठ ने हाल के एक फैसले में यह कहते हुए कहा कि अदालतें सहानुभूति से नहीं चल सकतीं।
दरअसल कर्नाटक पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (केपीटीसीएल) ने एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए एक अपील दायर की थी, जिसमें उसके पूर्व कर्मचारी की पत्नी द्वारा दायर याचिका को अनुमति दी गई थी। एकल न्यायाधीश ने केपीटीसीएल को परिवार पेंशन और उसके बकाया का भुगतान करने का निर्देश दिया था, जो कर्मचारी की मृत्यु की तारीख से 31 दिसंबर, 1986 तक 6% प्रति वर्ष की दर से और बाद की अवधि के लिए 12% प्रति वर्ष की वृद्धि के साथ ब्याज के साथ भुगतान करना था।
वहीँ कर्मचारी 18 दिसंबर, 1974 को केपीटीसीएल में शामिल हुआ था और 23 जुलाई, 1978 को एक दुर्घटना के कारण उसकी मृत्यु हो गई थी। KPCTL ने कर्मचारी की पत्नी द्वारा नई नीति के तहत पेंशन देने की मांग को खारिज कर दिया, जिसे मृत्यु के वर्षों बाद लागू किया गया था। इसे पत्नी ने एकल न्यायाधीश के समक्ष चुनौती दी और केपीटीसीएल को नए नियमों के तहत पारिवारिक पेंशन और बकाया का भुगतान करने का निर्देश देने की मांग की।
खंडपीठ ने दलील में पाया है कि नई योजना के लागू होने से बहुत पहले कर्मचारी की मृत्यु हो गई थी और योजना के संदर्भ में कर्मचारी की ओर से कोई योगदान नहीं दिया गया था। इसलिए अदालत ने कहा नई योजना के तहत ऐसे कर्मचारी की पत्नी का दावा नहीं किया जा सकता है। रिट याचिकाकर्ता को तत्कालीन मौजूदा योजना के तहत पारिवारिक पेंशन मंजूर की गई है और उसी के अनुसार उसे भुगतान भी किया जा रहा है। इस तरह के मामलों में, अदालतों के हाथ वैधानिक नीति से बंधे होते हैं जो पार्टियों के अधिकारों को नियंत्रित करती है। इस तरह के मामलों में अदालतें सहानुभूति के साथ नहीं चल सकतीं।