भोपाल, गौरव शर्मा। तीन दिन के ग्वालियर चंबल अंचल (Gwalior Chambal Zone) दौरे पर आकर ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि लोग उन्हें यूं ही महाराज नहीं कहते। इस दौरे में सिंधिया (scindia) ने अपनों के साथ साथ बेगानों से भी रिश्ता जोड़ने की सफल कवायद की है। अक्सर सार्वजनिक तौर पर ग्वालियर चंबल संभाग की जनता के साथ अपने साढे तीन सौ साल पुराने संबंध बताने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का ग्वालियर-चंबल अंचल का दौरा सियासी दृष्टिकोण से तो महत्वपूर्ण रहा ही, सिंधिया की बदली कार्यशैली और पुरजोर आत्मीयता ने सिंधिया विरोधियों को भी सकते में ला दिया।
अपने दौरे के दौरान सिंधिया ने जिस तरह से ग्वालियर (gwalior), भिंड और मुरैना में जाकर कोरोना से अपने परिजनों को गवा चुके लोगों के सिर पर हाथ फेरा, उसने एक बार फिर सिंधिया के अंचल की जनता के साथ मुखिया के भाव को साकार कर दिया। इन तीनों जिलों में सिंधिया लगभग 80 ऐसे परिवारों में गए। जहां कोरोना (corona) के चलते लोगों को अपने परिजनों का विछोह सहना पड़ा था और इन मुलाकातों में जो खास बात थी। वह यह कि है इस दौरान सिंधिया ने कोई औपचारिकता सी नहीं निभाई बल्कि खुद अकेले परिजनों के साथ बैठकर दुख साझा किया और उन्हें यह विश्वास भी दिलाया की चिंता ना करो ‘मैं हूं ना।’