ग्वालियर, अतुल सक्सेना। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) द्वारा केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) को गद्दार कहने के बाद प्रदेश की राजनीति का पारा चरम पर है। अब सिंधिया समर्थक नेता और मध्य प्रदेश सरकार के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर(Pradyuman Singh Tomar) ने दिग्विजय सिंह के पिताजी द्वारा अंग्रजों को लिखी चिट्ठी का हवाला देते हुए पलटवार किया है।
केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के संबंध में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह की अनर्गल व तथ्यहीन टिप्पणी की घोर निंदा करते हुए ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने ग्वालियर में कहा कि खुद जिनके परिवार का इतिहास कदम-कदम पर गद्दारी, विश्वासघात व अंग्रेजों की चापलूसी में रंगा पुता हो उन्हें सिंधिया जैसे देशभक्त व जनसेवी परिवार पर उंगली उठाने का कतई हक नहीं है। प्रद्युम्न सिंह तोमर ने कहा कि खुद दिग्विजयसिंह अपने पूरे राजनीतिक जीवन में अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ साजिशों का तानाबाना बुनते रहे जबकि अतीत में दिग्विजय के पिता व उनके भी पूर्वज राजा अंग्रेजों से हाथ मिलाकर सिंधिया परिवार को नुकसान पहुंचाकर अपना राघौगढ़ का राजपाट बचाते रहे।
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ऊर्जा मंत्री ने आज एक वक्तव्य में चौंकाने वाले खुलासे करते हुए कहा कि इतिहास झूठ नहीं बोलता है। उन्होंने बताया–राघौगढ़ के राजा शुरू से अंग्रेज भक्त रहे। सन 1775 से 1782 तक राघौगढ़ के राजा बलभद्र सिंह को मराठों से विश्वासघात करने पर सिंधिया शासकों ने ग्वालियर किले में कैद कर लिया था। इसी परिवार के राजा जयसिंह ने भी राघौगढ़ को बचाने के लिए देश से गद्दारी करते हुए अंग्रेजों का साथ दिया था। दिग्विजय सिंह के पूर्वज ब्रिटिश शासकों के हिमायती रहे और ग्रेट मराठा महादजी सिंधिया के विरुद्ध भी गद्दारी की थी। जब सिंधिया शासकों ने राघौगढ़ के राजा को दण्डित किया तो बचने के लिए उन्होंने जयपुर व जोधपुर राजघरानों तक से सिफारिश लगवाई थी। सिंधिया शासकों ने उन्हें बमुश्किल माफ किया था।
ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने कहा कि इसके उलट सिंधिया परिवार सिर्फ़ अपने देश व अपनी जनता के लिए जीता रहा, सिंधिया शासकों ने मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक से संघर्ष किया। आजादी से पहले अधिकांश सिंधिया शासकों ने देश के शत्रुओं से लड़ते हुए युद्धभूमि में ही बलिदान दिया है न कि राघौगढ़ के राजाओं की तरह प्रत्येक कालखंड में अंग्रेजों के साथ मिलकर सत्तासुख भोगा है।
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प्रद्युम्न सिंह तोमर ने बताया कि दिग्विजय सिंह के पिता स्वर्गित बलभद्र सिंह अंग्रेज भक्त थे। जब देश भक्त शहीद हो रहे थे, तब वे परिवार के लिए अंग्रेजों से सुविधाएं मांग रहे थे। प्रद्युम्न ने अपने इस आरोप को साबित करने के लिए कुछ ऐतिहासिक दस्तावेजों का हवाला दिया है। उन्होंने बताया कि राजा बलभद्र सिंह ने अपने वंश और अंग्रेज भक्ति का वर्णन करते हुए 16 सितंबर 1939 को पत्र लिखा था – ‘मेरे पूर्वजों ने 1779 से ब्रिटिश सरकार को भरपूर सेवाएं प्रदान की हैं। मेरे पिताजी ने भी आपको निजी सेवा प्रदान की है। पिछले युद्ध के समय भी ब्रिटिश सरकार को राघोगढ़ ने सेवा दी है। अब मैं आपको अपनी वफादारी से भरी सेवा देना अपना धर्म समझता हूं। ऊर्जा मंत्री ने खुलासा किया कि दिग्विजय सिंह के पिता बलभद्र सिंह का अंग्रेजों को लिखा ये पत्र सन 2002 में भोपाल में राजकीय अभिलेखागार और पुरातत्व विभाग द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी में रखा गया था। उस वक्त दिग्विजय सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उन्होंने तत्काल पत्र गायब करवा दिया था।
प्रद्युम्न सिंह तोमर ने प्रख्यात इतिहासकार राजा रघुवीर सिंह द्वारा किए दावे का उल्लेख करते हुए बताया कि दिग्विजय सिंह के पूर्वजों को मुगलों की वफादारी के बदले में राघौगढ़ मिला, पानीपत की तीसरी लड़ाई में राघौगढ़ के तत्कालीन राजा ने मराठा साम्राज्य के सेनापति सदाशिवराव भाऊ को सहयोग देने से इंकार कर दिया था और मुगलों का साथ दिया था। उन्होंने कहा कि दिग्विजय सिंह जैसे बुजुर्ग नेता को किसी पर झूठे व तथ्यहीन आरोप लगाकर राजनीति के इस निम्न स्तर तक पहुंचने के पहले खुद के मौकापरस्त व गद्दार परिवार के दागी इतिहास का स्मरण करना चाहिए। ऊर्जा मंत्री ने कहा कि दिग्विजय सिंह की देशभक्ति का असली स्वरूप उसी दिन जाहिर हो गया था, जब उन्होंने अल कायदा के ओसामा बिन लादेन को ओसामाजी कहा था।
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ऊर्जा मंत्री तोमर ने कहा कि कांग्रेस की सरकार बनने पर कश्मीर से 370 धारा हटाने की बात करने वाले नेता से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है। सिंधिया परिवार के खिलाफ अनर्गल बयानबाज़ी कर दिग्विजय प्रदेश की सत्ता अपने हाथ से फिसलने और आगामी चुनाव में भी अपनी पार्टी की हार पक्की होने की भड़ास निकाल रहे हैं। इस तरह के निर्लज्ज बयान से उनकी मानसिक स्थिति जाहिर होती है।
प्रद्युम्न सिंह तोमर ने कहा कांग्रेस नेता के रूप में दिग्विजय का दामन भी गद्दारी के धब्बों से भरा है। दिग्विजय सिंह जिस भी ईश्वर या अल्लाह को मानते हैं, उसका संकल्प लेकर उन्हें इस बात का चिंतन-मंथन करना चाहिए कि आज मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जो दुर्गति हो रही है, उसके लिए वह जिम्मेदार हैं अथवा नहीं। प्रद्युम्न सिंह ने आरोप यह किसी से छिपा नहीं है कि अपने ही राजनीतिक गुरु व संबंधी अर्जुन सिंह को होशंगाबाद में, कमलनाथ को छिंदवाड़ा में एवं सुरेश पचौरी को भोपाल में चुनाव हराने में अहम भूमिका दिग्विजय की ही रही थी। दिग्विजय तो अपने समर्थकों के साथ भी गद्दारी करते रहे हैं। उन्होंने तो कमलनाथ की सरकार बनने पर केपी सिंह, बिसाहूलाल सिंह एवं एंदलसिंह जैसे समर्थकों के नाम मन्त्रियों की सूची में से कटवा दिए थे जबकि बिसाहूलाल जैसे नेता कांग्रेस में रहते खुद को हनुमान और दिग्विजय को राम बताते थे। दिग्विजय को कांग्रेस के हित-अहित से कोई लेना-देना नहीं है। उनकी राजनीति का एकमेव मकसद अपने व अपने बेटे के लिए कुर्सी महफूज करना रहा है।
ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने दिग्विजय सिंह को सलाह दी कि उन्हें मनगढ़ंत बातें छोड़कर अपनी अंतरात्मा से ही यह पूछना चाहिए कि देश और समाज के लिए कौन जिया है और ब्रिटिश शासन की चरणवंदना किसने की है। उन्होंने कहा कि दिग्विजय को अपनी आधारहीन टिप्पणी के लिए सिंधिया परिवार से तत्काल माफी मांगनी चाहिए ताकि उनका कुछ राजनीतिक शुद्धिकरण हो सके।