भोपाल। मध्य प्रदेश की सत्ता पर 13 साल तक राज करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता के कायल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तक हैं। वह शिवराज को ‘जेन्टलमेन’ कहते हैं। लेकिन फिर क्या वजह रही जिस कारण भाजपा ने उन्हें हारने के बाद केंद्र की राजनीति में भेजने का निर्णय लिया। जबकि शिवराज इस बात को मानते हैं कि प्रदेश में हार का बड़ा कारण रहा है बीजेपी में आंतरिक गुटबाजी। ये खुलासा उनसे जुड़े एक खास नेता ने किया है। उनका कहना है कि हार के बाद शिवराज ने कहा था कि पार्टी नेताओं की आपसी गुटबाजी के कारण जीत से दूर रहे, इसलिए हम लंगड़ी सरकार नहीं बनाएंगे। जनता से मिला प्यार और जनाधार का हम सम्मान करते हैं।
दरअसल, हार के बाद शिवराज ने प्रदेश में रहकर काम करने की इच्छा केंद्रीय नेतृत्व को जताई थी। लेकिन शाह ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर केंद्र की सियासत में सक्रिया होने के संकेत दिए। इससे शिवराज को झटका जरूर लगा। वह प्रदेश में 13 साल तक सरकार चलाने में कामयाब हुए। जहां बीजेपी कमजोर थी वहां उन्होंंने अपने काम के दम पर पार्टी संगठन खड़ा किया। लेकिन गुटबाजी पर पर्दा डाल हार का ठीकरा शिवराज के सिर फोड़ा गया। नतीजे आने से पहले ही पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा ने शिवराज पर निशाना साधते हुए उन्हें हार का जिम्मेदार ठहरा दिया था।
शिवराज प्रदेश में मिली 109 सीटों के लिए आभार यात्रा निकालना चाहते थे। यही नहीं वह नेता प्रतिपक्ष के पद की रेस में भी शामिल थे। लेकिन आलाकमान ने दोनों ही बातों को खारिज करते हुए उन्हें केंद्रीय राजनीति में लाने का फैसला कर दिया। हालांकि, शिवराज लगातार कमलनाथ का घेराव अकेले ही कर रहे हैं। वह विपक्ष की भूमिका में रहते हुए ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं। उन्होंने सरकार पर हमला करते हुए जनसभा में कहा था कि वह प्रदेश की जनता के साथ गलत नहीं होने देंगे। टाईगर अभी जिंदा है का नारा एक बार फिर उन्होंने बुलंद किया था।
हालांकि चौहान को पार्टी कार्यकर्ताओं से प्यार है, लेकिन आलाकमान उन्हें विधानसभा चुनाव की हार के खलनायक के रूप में चित्रित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहा है। मध्य प्रदेश के लिए लोकसभा चुनाव समिति में, चौहान को 13 वें स्थान पर रखा गया। कांग्रेस प्रवक्ता सैयद ज़फर ने कहा कि भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेताओं के साथ कैसा व्यवहार किया। उन्होंने कहा, ” एक व्यक्ति को यह नहीं भूलना चाहिए कि मोदी ने एल.के. आडवाणी के साथ कैसा बर्ताव किया। बीजेपी और आरएसएस का एक वर्ग मानता है कि मध्य प्रदेश में पार्टी हार गई क्योंकि बीजेपी 13 साल में चौहान के नेतृत्व में बहुत अधिक व्यक्तित्व केंद्रित हो गई थी। चौहान के समर्थकों का मानना है कि उन्होंने भाजपा की छवि को ब्राह्मण-बनिया पार्टी से “गरीबों और किसानों” की पार्टी में बदलने में मदद की।