भोपाल। मध्य प्रदेश की सभी 29 सीटों पर भाजपा ने उम्मीदवार उतार दिए हैं। लेकिन भाजपा के सामने इस बार अपने ही राह का कांटा बने हैं। पार्टी ने इस बार 14 वर्तमान सांसदों का टिकट काटा है। जबकि, दस सीटों पर भाजपा को सीधे अपनों से चुनौती मिल रही है। मुख्य विरोधी पार्टी कांग्रेस के अलावा उसे बागियों से भी खतरा बना है। विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण में हुई गलती के कारण पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा, अब लोकसभा चुनाव में भी वही हालात हैं।
दरअसल, बीजेपी ने इस बार संघ सी सलाह को ध्यान में रखते हुए टिकट वितरण किया है। कई सीटों पर वर्तमान सासंदों के टिकट काटे गए हैं। जिससे वह खफा है, कुछ ने निर्दलीय लड़ने का ऐलान किया है तो कोई पार्टी उम्मीदवार के प्रचार अभियान से दूरी बनाए है। ऐसे में पार्टी को भितरघात की चिंता सता रही है। इसलिए उसे चुनावी नैया पार लगाने के लिए खासतौर पर सागर, बालाघाट, दमोह, सीधी, उज्जैन, खजुराहो, शहडोल, बैतूल, खरगोन, भिंड और सतना जैसी सीटों पर आपदा प्रबंधन के विशेष इंतजाम करने पड़ रहे हैं। डैमेज कण्ट्रोल के लिए लगातार संपर्क किये जा रहे हैं, इस तरह के हालात से नुकसान की संभावना है|
15 साल बाद बने ऐसे हालात
प्रदेश में बीते 15 साल से बीजेपी की सरकार थी। नेताओं के खफा होने का सिलसिला तब भी था लेकिन प्रदेश में सरकार होने के कारण रूठों को बड़ा पद देकर शांत कर दिया जाता था। लेकिन अब बीजेपी विपक्ष में है ऐसे में उसके पास समझाइश के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। लोकसभा के चुनावी संग्राम में वर्ष 2004, 2009 और 2014 के संसदीय चुनाव में मप्र की सत्ता पर भाजपा की सरकार काबिज थी, लेकिन इस बार 17वीं लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा को मप्र की कई सीटों पर प्रत्याशी का चयन करना लोहे के चने चबाने जैसा रहा। इंदौर, भोपाल, सागर, खजुराहो, बालाघाट और विदिशा जैसी उसकी पारंपरिक कही जाने वाली सीटों पर उसे प्रत्याशी चयन में भारी विचार मंथन से गुजरना पड़ा।
बालाघाट, सागर और खजुराहो संसदीय क्षेत्र पर तो उम्मीदवार का एलान होते ही कई नेताओं ने खुलकर विरोध जताया। तात्कालिक रूप से भाजपा की आपदा प्रबंधन इकाई और वरिष्ठ नेताओं ने असंतोष को काबू करने का दावा किया है, लेकिन अंदरूनी तौर पर पार्टी और प्रत्याशी दोनों ही सशंकित बने हुए हैं।