भोपाल। प्रदेश में पहले चरण के मतदान से 6 दिन पहले भाजयुमो के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष धीरज पटेरिया ने एक बार फिर भाजपा को बड़ा झटका दे दिया है। पटैरिया ने आज कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस का हाथ थाम लिया| मंगलवार को जबलपुर के सिहोरा के राजीव गांधी मैदान में हुई चुनावी सभा में उन्होंने राहुल गाँधी के हाथों पार्टी की सदस्यता ली| धीरज ने कांग्रेस की सदस्यता लेने से पहले ही एलान कर दिया था कि वे जबलपुर को निष्क्रिय सांसद से निजात दिलाएंगे। यहां से भाजपा प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह चुनाव मैदान में है। पटैरिया के कांग्रेस में जाने से राकेश की चुनाव में मुश्किलें और बढ़ गई हैं। कांग्रेस से इस बार विवेक तन्खा मैदान में हैं|
पांच महीने पहले निर्दलीय विधानसभा चुनाव लड़ चुके धीरज पटेरिया के कांग्रेस में शामिल होने से जबलपुर संसदीय क्षेत्र की राजनीति में नया मोड़ आ गया है। क्योंकि धीरज पटेरिया की बगावत के चलते उत्तर मध्य विधानसभा से मंत्री रहे शरद जैन को हार का मुंह देखना पड़ा था। पटेरिया ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं वर्तमान सांसद राकेश सिंह पर अटलजी और मोदी के नाम पर वोट मांगने के आरोप लगाते हुए कहा कि अब जबलपुर को निष्क्रिय सांसद से निजात दिलाना है। राकेश सिंह का 15 साल कार्यकाल रहा है। किंतु उनका न तो विजन है और न शहर में कोई उल्लेखनीय योगदान ही नजर आ रहा है। वे कांग्रेस में एक समर्पित सेवक बनकर शहर के लिए काम करना चाहते हैं। उन्होंने कहा विवेक तन्खा के विजन को देखकर वे कांग्रेस में शामिल होने जा रहे हैं।
ताकतवर नेता के रूप में उभरे थे पटैरिया
भाजयुमो के प्रदेशाध्यक्ष के रूप में धीरज पटेरिया महाकौशल में भाजपा के युवा नेता के रूप में उभरे थे। लेकिन अध्यक्ष पद से हटने के बाद पार्टी ने उन्हें साइडलाइन कर दिया था। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से पटैरिया की पटरी नहीं बैठी थी। जिसकी वजह से पटैरिया साइडलाइन रहे। पटैरिया ने प्रदेशाध्यक्ष रहते भाजयुमो को खड़ा किया, जिससे महाकौशल क्षेत्र के भाजपा नेताओं को खतरा पैदा हो गया। पटैरिया उस समय भाजयुमो के अध्यक्ष थे जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस भी भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष रहे जो अब मुख्यमंत्री तक पहुंचे हैं। धीरज ने पार्टी की सेवा के लिए ताउम्र अविवाहित रहने का संकल्प भी किया है। लेकिन उपेक्षा से आहत होने पर उन्होंने साल 2018 में पार्टी से बगावत कर दी और राज्यमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ा। जिसका फायदा कांग्रेस को मिला और जबलपुर की मध्य विधासभा सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। ये सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती रही है।