भोपाल। विधानसभा चुनाव हारने के बाद मध्य प्रदेश में भाजपा पर आर्थिक संकट आ गया है। हार के एक महीने बाद ही पार्टी फंड में कमी आने लगी है। लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी किसी भी तरह आर्थिक तौर पर कमजोर होना नहीं चाहती है। सूत्रों के मुताबिक आम चुनाव होने के कारण केंद्र से भी पार्टी को निर्देश है कि चंदा अधिक से अधिक जमा करने का प्रयास करें।
पार्टी जब सत्ता में थी तब किसी ने चंदे की परवाह नहीं की। लेकिन अब बीजेपी संगठन ने अपने खर्चों में कटौती करना शुरू कर दी है। चुनाव हारने से पहले पार्टी के तमाम खर्चों की बागडोर पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह के हाथ में होती थी। सत्ता से बाहर होने के साथ ही पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान का रोल भी अब इस काम में लगभग खत्म हो गया है। अब प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह के पास पार्टी खर्चों की पूरी जिम्मेदारी है। प्रदेश मुख्यालय से लेकर जिला स्तर तक पार्टी को चंदे की कमी से जूझना पड़ रहा है।
सामान्य तौर पर भाजपा नेताओं का कहना है कि पार्टी के जो अजीवन चंदा देने वाले सदस्य हैं उनसे एकत्रित धन के माध्यम से खर्च किए जाते हैं। पार्टी में फंड की कमी इशारा करती है कि पार्टी संगठन के खर्चों का प्रबंधन करने के लिए पैसे के अन्य स्रोत हैं। पार्टी लोकसभा चुनावों के बाद अपने नेताओं के खर्चों की जांच कर सकती है।
विधानसभा चुनाव के खर्चे का नहीं हुआ भुगतान
विधानसभा चुनाव में हुए खर्चों का अब तक पार्टी की ओर से भुगतान नहीं किया गया है। करोड़ों रुपए के बिल अब तक पेंडिंग हैं। यही नहीं भाजपा नेताओं के रोजाना के खर्चों के बिल भी भाजपा कार्यालय में अबतक अटके हुए हैं।
सत्ता में रहते हुए पार्टी के हालात अलग थे
राष्ट्रीय संगठन महासचिव रामलाल ने लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर एक बैठक की थी। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से लोकसभा चुनाव में होने वाले कार्यक्रमों के लिए स्वयं के खर्चों से इंतजाम करने के लिए कहा है। उन्होंने कहा कि जब पार्टी सत्ता में थी तब हालात अलग थे अब आपको पार्टी कार्यक्रम के लिए खुद ही सब मैनेज करना होगा।