अगर तबला बोल पाता तो कहता..उस्ताद ज़ाकिर हुसैन कहीं नहीं जाते

कुछ लोग आने-जाने से परे होते हैं। वे सिर्फ 'होते' हैं। ज़ाकिर साहब भी उन्हीं में से हैं। भले उन्होंने इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह दिया हो..लेकिन उनका 'होना' सदा रहेगा। वे सदा रहेंगे। जब भी कहीं तबले की थाप गूंजेगी..ज़ाकिर हुसैन कहीं मुस्कुरा उठेंगे। 

Shruty Kushwaha
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Zakir Hussain

Legendary Tabla Maestro Ustad Zakir Hussain : कुछ समय पहले देखा वीडियो ज़हन में घूम रहा है। ज़ाकिर हुसैन मंच पर परफॉर्म कर रहे हैं। तभी तबले के पास रखा माइक गिरने लगता है। कुछ देर ये देखने के बाद ज़ाकिर साहब तबला बजाते हुए एक हाथ से माइक पकड़ते हैं..फिर तबले पर लौटते हैं। दुबारा माइक पकड़ते हैं..तबले पर लौटते हैं। कुछ ही पलों में ऐसा कई बार होता है। इस दौरान उनके चेहरे पर वही सुंदर हंसी सजी हुई है। कुछ ही देर में एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आता है और माइक ठीक कर देता है। लेकिन इस छोटे से वाक़ये से ज़ाकिर हुसैन की ‘बड़ी’ शख़्सियत का मुज़ाहिरा होता है।

बचपन का वो विज्ञापन आंखों के सामने घूम रहा है जिसमें एक बेइंतिहा ख़ूबसूरत शख्स तबला बजाते हुए ‘वाह ताज’ कह रहा है। वो वक्त जब न तो तबले की समझ थी न संगीत की तमीज़। लेकिन उस चेहरे की मुक़द्दस हंसी में कुछ ऐसा जादू था..जो कभी टूटा ही नहीं। कुछ लोग होते हैं न जिन्हें आप ज़ाती तौर पर नहीं जानते। न कभी देखा न मिले। फिर भी वो आपकी ज़िंदगी में एक अहम हिस्सा हो जाते हैं। लगता है जैसे कोई अपना ही हो। ज़ाहिर हुसैन ऐसे ही अज़ीम शख्स हैं।

उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का जाना…

उनके नाम के साथ ‘थे’ लगाना मुमकिन नहीं। बड़ी क्लीशे सी बात है कि वो अपनी कला के ज़रिए हमेशा ज़िंदा रहेंगे। लेकिन ये बात सौ फ़ीसद सच भी है। और ये बात सिर्फ आज इस मूमेंट का सच नहीं है, जबकि सब उनके जाने के दुख में है। ये बात आने वाली कई पीढ़ियों का सच है जो जब भी तबले का ज़िक्र करेंगीं तो वो ज़ाकिर हुसैन के बिना अधूरा होगा। तबला उस्ताद कई हुए हैं लेकिन इस अंडररेटेड वाद्य यंत्र को जो ख्याति ज़ाकिर साहब ने दिलाई है..उसका कोई मुकाबला नहीं।

फिर बात हमेशा कला या हुनर की हो..ये भी तो ज़रूरी नहीं। उस कला या हुनर के साथ जो शख्स जुड़ा होता है, वो कैसा है..ये भी मायने रखता है। और जितनी उम्र ज़ाहिर साहब जीकर गए..उससे कई गुना ज्यादा उनकी सादगी, सरलता और ज़िंदादिली के किस्से मशहूर हैं। लोगों से वो इस मुहब्बत से मिलते थे कि सामने वाला उनका मुरीद हो जाए। उनसे मिलने वालों के पास उनकी सादादिली  की सैंकड़ों यादें है।

हमेशा रहेंगे यादों में

आज वो इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह गए हैं। आज हमने एक ऐसे तबला वादक को खो दिया है..जो सदियों में कभी कभार जन्मते हैं। वो बहुत जल्दी चले गए। उनके जाने से संगीत की दुनिया थोड़ी और खाली हो गई है। लेकिन ये लिखते हुए मेरे कानों में उस्ताद अल्ला रखा के बेटे की उंगलियों की थाप गूँज रही है। फिर महसूस होता है..हम ख़ुशनसीब हैं कि उन्हें देखा-सुना। हम ख़ुशनसीब है कि ऐसे लीजेंड की विरासत के भागीदार हो पाए हैं। आज वो सशरीर भले न हों, मगर उनकी कला हमेशा रहेगी।

उनके जाने से मन बेइंतिहा उदास है..पीछे कहीं तबले पर तीन ताल बज रही है।

 


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Shruty Kushwaha

Shruty Kushwaha

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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