भोपाल| मध्य प्रदेश में कांग्रेस की 15 साल बाद सत्ता वापसी में खास भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर पार्टी अब तक कोई फैसला नहीं ले पाई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की दौड़ में उनका नाम सबसे आगे बताया जा रहा है इस बीच सिंधिया को राज्यसभा भेजने के लिए लॉबिंग शुरू हो गई है। सिंधिया समर्थक मंत्री ने सिंधिया को राज्यसभा भेजने की मांग पार्टी नेतृत्व से की है।
अप्रैल में राज्यसभा की तीन सीटें खाली हो रही हैं। फिलहाल दो भाजपा के पास हैं और एक सीट पर कांग्रेस का कब्जा है| इन सीटों के लिए बीजेपी और कांग्रेस के बीच घमासान शुरू हो गया है| इस बार कांग्रेस के हिस्से में दो सीटें आ रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और पूर्व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया इन सीटों पर सबसे बड़े दावेदार के रुप में सामने आए हैं। एक सीट दिग्विजय सिंह का कार्यकाल पूरा होने से ही खाली हो रही है। सूत्रों की मानें तो दिग्विजय सिंह को एक बार फिर से राज्यसभा भेजा जा सकता है। वहीं दूसरी सीट पर सिंधिया का नाम तय हो सकता है। तीसरी सीट के लिए संख्याबल के हिसाब से चुनाव रोचक होगा।
भाजपा कांग्रेस में जोड़ तोड़ शुरू
चुनाव आयोग ने मध्यप्रदेश से 9 अप्रैल 2020 को खाली हो रही 3 राज्यसभा सीटों के चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी है। शीघ्र ही विस्तृत कार्यक्रम जारी किया जाएगा। आयोग ने चुनाव कराने के लिए विधानसभा के प्रमुख सचिव एपी सिंह को निर्वाचन अधिकारी बनाया है। अप्रैल में खाली हो रही तीन सीटों में से अभी बीजेपी के पास दो सीटें हैं, जबकि कांग्रेस के खाते में एक सीट है जिस पर कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह काबिज हैं| भाजपा के राज्यसभा सदस्य उपाध्यक्ष प्रभात झा और सत्यनारायण जटिया (अनुसूचित जाति) का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है। इस सीट पर जहां प्रभात झा तीसरी पारी खेलने की तैयारी में हैं तो बाकी नेता नेताओं ने भी राज्यसभा सदस्य बनने के लिए जोड़-तोड़ शुरू कर दी है। वहीं दिग्विजय सिंह भी दोबारा राज्यसभा जाने की पूरी कोशिश में लगे हैं| विधानसभा की दलीय स्थिति के मुताबिक एक सीट भाजपा, एक कांग्रेस को मिलेगी, लेकिन तीसरी सीट के लिए घमासान होगा।
संख्याबल के हिसाब से रोचक होगा मुकाबला
तीन सीटों में से कांग्रेस और भाजपा के एक-एक प्रत्याशी की जीत की संभावना तय है| जबकि तीसरे सदस्य के मामले में हाल फिलहाल कांग्रेस का पलड़ा भारी है। निर्वाचन के लिए कम से कम 58 विधायकों के वोटों की जरूरत है। यानी कांग्रेस और भाजपा अपने एक-एक उम्मीदवार को राज्यसभा में आसानी से पहुंचा सकते हैं। लेकिन तीसरे प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस की राह भाजपा के मुकाबले आसान है। तीसरी सीट के लिए निर्दलीय विधायकों की भूमिका अति महत्वपूर्ण होगी। एक सदस्य के लिए 58 विधायकों के वोट की जरूरत पड़ती है, इस लिहाज से तीसरी सीट के लिए कांग्रेस के 56 और भाजपा के पास 50 विधायक बचेंगे। कांग्रेस को जहां दो वोट की जुगाड़ करनी होगी, वहीं भाजपा को आठ वोटों की जरूरत होगी। दोनों दलों की नजर निर्दलीय विधायकों पर होगी।