भोपाल, हरप्रीत रीन। मध्य प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बने पोषण आहार घोटाले में रोज नए-नए खुलासे हो रहे हैं। कभी वाहनों के गलत नंबर को लेकर तो कभी प्लांटों में बिजली सप्लाई को लेकर बातें सामने आ रही हैं। लेकिन एमपीब्रेकिंग के हाथ कुछ ऐसी जानकारियां लगी है जो यह बताती हैं कि इस पूरे मामले को सुनियोजित ढंग से कुख्यात रहे एमपी एग्रो के माध्यम से पोषण आहार माफियाओ को लाभ पहुचाने के लिये अंजाम दिया गया।
मध्य प्रदेश में इन दिनों मार्च 2018 से मार्च 2021 तक हुए पोषण आहार घोटाले की चर्चा है। इसमें महिला बाल विकास विभाग को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। लेकिन एमपी ब्रेकिंग न्यूज़ के पास जो जानकारी मिली है उसके अनुसार इस पूरे मामले में सरकार के तीन विभाग महिला एवं बाल विकास विभाग, ग्रामीण एवं पंचायत विभाग और उद्यानिकी विभाग की भूमिका सामने आई है। दरअसल इस पूरे मामले की शुरुआत होती है अप्रैल 2016 से। उस समय प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान थे जिन्होंने इस बात की घोषणा की थी कि मध्यप्रदेश में शिशुओं को मिलने वाला पोषण आहार भ्रष्टाचारियों के मुंह में न जाए, इसके लिए वर्तमान में एमपी एग्रो के माध्यम से चल रही ठेकेदारी व्यवस्था को पूरी तरह से बंद किया जाएगा। इसके पीछे सीएम शिवराज सिंह की सोच यह थी कि वर्षों से जो संगठित माफिया पोषण आहार निगलने में सक्रिय है, उसकी बजाए मध्यप्रदेश की उन महिलाओं को स्व सहायता समूह के माध्यम से इस कार्य में लगाया जाए जो आजीविका विहीन है और उनका सशक्तिकरण किया जाए। SRLM के माध्यम से मुख्यमंत्री ने इसका पूरा खाका तैयार किया और तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस को इसकी कार्ययोजना बनाने के लिए कहा। मुख्यमंत्री के इस निर्णय को मूर्त रूप देने के लिए तत्कालीन ग्रामीण एवं पंचायत विभाग विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस ने एक व्यवस्था तैयार की जिसमें SRLM के माध्यम से स्व सहायता समूह पोषण आहार तैयार करने का काम करने थे। SRLM के प्लांटों में काम शुरू भी हो गया लेकिन पोषण आहार का व्यापक उत्पादन करने के लिए समय चाहिए था इसीलिए कैबिनेट ने निर्णय लिया कि जब तक इन प्लांटों में काम शुरू नहीं हो जाता तब तक पोषण आहार की सप्लाई खुली निविदा के माध्यम से जारी रहेगी।
नवम्बर 2018 में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हो गया और कमलनाथ के नेतृत्व में प्रदेश सरकार बनी। लेकिन कमलनाथ सरकार के बनने के कुछ दिन बाद ही SRLM प्लांटों का प्रबंधन उसी एमपी एग्रो को सौंप दिया गया जिस पर वर्षों से पोषण आहार मामले में भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगे थे और जो पूरी तरह से पोषण आहार माफियाओं की गिरफ्त में था। अब महिला बाल विकास विभाग की भूमिका केवल SRLM प्लांट द्वारा तैयार माल को लेकर उसकी सप्लाई और लिए गए माल का भुगतान करने तक सीमित थी। अब सारा प्रबंधन एमपी एग्रो के हाथ में था। ऐसे में कच्चे माल की सप्लाई पोषण आहार माफियाओं के हाथों में ही रही और वे लगातार यह सप्लाई करते रहे। अब अगर SRLM के प्लांटों में जितना उत्पादन हुआ उतने की बिजली सप्लाई नहीं हुई जैसी बातें सामने आ रही हैं तो यह भी साफ हो रहा है कि वास्तव में इन प्लांटों में जितने कच्चे माल की आपूर्ति ठेकेदारों द्वारा बताकर उसका भुगतान लिया गया, वास्तव में ऐसा हुआ ही नहीं यानी एक बार फिर मध्यप्रदेश का पोषण आहार माफियाओं की भेंट चढ़ गया।
अब जरूरत इस बात की है कि इस पूरे मामले में जितनी अवधि में SRLM के प्लांट एमपी एग्रो के पास रहे, उस पूरी अवधि में किए गए सारे कार्यकलापों की एक विस्तृत जांच हो ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। हालांकि शिवराज सरकार ने आने के कुछ समय बाद ही इस पूरे मामले में एमपी एग्रो का नियंत्रण फिर हटा दिया और अब SRLM प्लांट सीधे पंचायत व ग्रामीण विभाग के माध्यम से ही नियंत्रित हो रहे हैं।