भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्यप्रदेश में बाघों (Tiger) के प्रबंधन में वैज्ञानिक प्रबंधन प्रक्रिया अपनाने की वजह से बेहतर परिणाम मिल रहे हैं। ये प्रक्रिया अन्य वन्य प्राणियों के लिए भी अपनाई जा रही है। साल 2018 में आंकलित 526 बाघों में से तकरीबन 40 फीसदी बाघ संरक्षित क्षेत्रों के बाहर वन-क्षेत्रों में विचरण करते हैं। क्षेत्रीय वन मण्डलों और राज्य वन विकास निगम इकाईयों के वन कर्मियों के उत्कृष्ट प्रबंधन और सतत् सुरक्षा के चलते यह कामयाबी मिल रही हैं। वन मंत्री कुंवर विजय शाह (Kunwar Vijay Shah) ने बताया कि प्रदेश का वन आवरण पहले हुए आंकलन की तुलना में वर्तमान में 68.49 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है। इसके साथ ही प्रदेश के संरक्षित क्षेत्रों के भीतर वन्य प्राणियों के लिए उपयुक्त रहवास के क्षेत्रफल में भी इजाफा हुआ है।
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वनमंत्री ने बताया कि संरक्षित क्षेत्रों के भीतर स्थित 190 से अधिक राजस्व और वन ग्रामों के पुनर्स्थापन से वन्य प्राणियों के रहवास स्थल में 360 वर्ग किलामीटर की बढ़ोतरी हुई है। इस व्यवस्था में 15 हजार 300 परिवार इकाईयों से संरक्षित क्षेत्रों पर होने वाले जैविक दबाव में भी कमी परिलक्षित हुई है। आने वाले समय में नौरादेही अभ्यारण्य, संजय टाइगर रिजर्व और रातापानी अभयारण्य आदि संरक्षित क्षेत्रों में होने वाले पुनर्स्थापन से बाघों और अन्य वन्य प्राणियों के लिए संरक्षित क्षेत्रों के भीतर उच्च गुणवत्ता के रहवास स्थलों का विस्तार किया जाएगा। इसके साथ ही बाघों के रहवास को जोड़ने वाले बाघ कोरीडोर को और अधिक सुदृढ़ किया जाएगा। इससे बाघों का एक संरक्षित क्षेत्र से दूसरे संरक्षित क्षेत्र में आवागमन आसान होगा और उन्हें विस्तृत विचरण के लिए वन क्षेत्र प्राप्त होगा।
वन संरक्षण अधिनियम 1980 के प्रावधान और सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर दिए गए। निर्देश के अनुपालन में प्रदेश के संरक्षित क्षेत्रों की भूमि को गैर वानिकी कार्यों के लिए देनें की प्रक्रिया निर्धारित की गई है। इसी प्रकार एक से अधिक स्थलों पर वन्य प्राणी विशेषज्ञ, वन अधिकारियों के अलावा राज्य वन्य प्राणी बोर्ड और राष्ट्रीय वन्य प्राणी बोर्ड जैसी संवैधानिक संस्थाओं दवारा प्रस्तावों का परीक्षण कर अनुमोदन दिया जाता है। गैर वानिकी कार्यों के प्रस्ताव के समय यह संवैधानिक संस्थाएँ इसका विशेष ध्यान रखती है कि अनुमोदन दिए जाने से वन्य प्राणियों एवं वन्य प्राणी आवास के लिए विपरीत प्रभाव न पड़े।