सोनिया गांधी होने का अर्थ : 77वां जन्मदिन आज, तमाम संघर्षों के बाद भी क्यों नहीं छोड़ा भारत, जानिए वजह

Sonia Gandhi

Sonia Gandhi Birthday : आज सोनिया गांधी का 77वां जन्मदिन है। 9 दिसंबर 1946 को इटली में जन्मी सोनिया गांधी कांग्रेस में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष पद पर रही हैं। सोनिया गांधी की शादी 1968 में 22 वर्ष की उम्र में राजीव गांधी से हुई थी। शादी के बाद से ही वे भारत में रह रही हैं, भारत की नागरिक हैं।। इस तरह देखें तो उन्हें भारत में रहते हुए 55 साल बीत गए हैं। अपनी आयु के दुगने से भी अधिक वर्ष उन्होने भारत में बिताए हैं और अफसोस की बात ये है कि आज भी उनके ऊपर से ‘विदेशी बहू’ होने का टैग नहीं हट पाया है।

कांग्रेस या सोनिया गांधी पर जब भी उसके विपक्षी दल हमलावर होते हैं तो इस तरह की शब्दावली का प्रयोग नया नहीं है। हम उस संस्कृति में रहते हैं जहां बेटी को पराया धन मानने और बहू को अपनाने की परंपरा रही है। हालांकि बेटी को पराया मानना भी पितृसत्तात्मक मनोवृत्ति है लेकिन जिस संस्कृति में बहू को अपनाने का रिवाज़ रहा है, मान्यता है कि जहां बहू ही वंश को आगे बढ़ाती है, जहां पुरातनकाल से अलग अलग देशों की कन्याओं के साथ विवाह की परंपरा रही है…उस देश में सोनिया गांधी का जिस तरह से मानहनन किया गया, वो कहीं न कहीं हमारी कुंठित सोच का ही परिचायक है।

1968 में सोनिया और राजीव की शादी हुई और 1991 में राजीव गांधी का निधन हुआ। इस तरह सोनिया गांधी ने अपने 77 साल के जीवनकाल में सिर्फ 23 साल वैवाहिक जीवन में गुजारे। पिछले 32 साल से वो अपने जीवनसाथी के बिना हैं, बावजूद इसके उन्होने भारत में रहना चुना। कई लोग हैं जो उन्हें राजनीतिक महत्वाकांक्षी बताते हैं..लेकिन उन्होने खुद अपनी इच्छा से कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ा। वे कभी भारत सरकार में किसी सार्वजनिक पद पर नहीं रही हैं। लेकिन उनके उनपर लगातार निजी हमले होते रहे हैं। उनके लिए जितने अपशब्दों का प्रयोग हुआ, जैसी बातें कही गई, वो किसी भी सभ्य समाज का दर्शन नहीं हो सकती है। आज सोनिया गांधी के जन्मदिन पर हम आपके लिए उनके द्वार लिखे गए एक पत्र का अंश लेकर आए हैं। ये पढ़ने के बाद शायद हम कुछ संवेदनशील होकर ‘सोनिया गांधी’ होने का अर्थ समझ पाएंगे।

सोनिया गांधी का पत्रांश

“मुझे राजीव लौटा दीजिए मैं लौट जाऊंगी। नहीं लौटा सकते तो उनके पास यहीं मिट्टी में मिल जाने दीजिए

आपने देखा है न उन्हें। चौड़ा माथा, गहरी आंखे, लम्बा कद और वो मुस्कान। जब मैंने भी उन्हें पहली बार देखा, तो बस देखती रह गयी। साथी से पूछा- कौन है ये खूबसूरत नवजवान। हैंडसम! हैंडसम कहा था मैंने। साथी ने बताया वो इंडियन है। पण्डित नेहरू की फैमिली से है। मैं देखती रही। नेहरू की फैमिली के लड़के को।

कुछ दिन बाद, यूनिवर्सिटी कैंपस के रेस्टोरेन्ट में लंच के लिए गयी। बहुत से लड़के थे वहां। मैंने दूर एक खाली टेबल ले ली। वो भी उन दूसरे लोगो के साथ थे। मुझे लगा, कि वह मुझे देख रहे है। नजरें उठाई, तो वे सचुच मुझे ही देख रहे थे। क्षण भर को नजरे मिली, और दोनो सकपका गए। निगाहें हटा ली, मगर दिल जोरो से धड़कता रहा।

अगले दिन जब लंच के लिए वहीं गयी, वो आज भी मौजूद थे। वो पहली नजर का प्यार था। वो दिन खुशनुमा थे। वो स्वर्ग था। हम साथ घूमते, नदियों के किनारे, कार में दूर ड्राइव, हाघो में हाथ लिए सड़कों पर घूमना, फिल्में देखना। मुझे याद नही की हमने एक दूसरे को प्रोपोज भी किया हो। जरूरत नही थी, सब नैचुरल था, हम एक दूसरे के लिए बने थे। हमे साथ रहना था। हमेशा।

उनकी मां प्रधानमंत्री बन गयी थी। जब इंग्लैंड आयी तो राजीव ने मिलाया। हमने शादी की इजाजत मांगी। उन्होंने भारत आने को कहा। भारत? ये दुनिया के जिस किसी कोने में हो। राजीव के साथ कहीं भी रह सकती थी। तो आ गयी। गुलाबी साड़ी, खादी की, जिसे नेहरू ने बुना था, जिसे इंदिरा ने अपनी शादी में पहना था, उसे पहन कर इस परिवार की हो गयी। मेरी मांग में रंग भरा, सिन्दूर कहते हैं उसे। मैं राजीव की हुई, राजीव मेरे, और मैं यही की हो गयी।

दिन पंख लगाकर उड़ गए। राजीव के भाई नही रहे। इंदिरा को सहारा चाहिए था। राजीव राजनीति में जाने लगे। मुझे नही था पसंद, मना किया। हर कोशिश की, मगर आप हिंदुस्तानी लोग, मां के सामने पत्नी की कहां सुनते है। वो गए, और जब गए तो बंट गये। उनमें मेरा हिस्सा घट गया। फिर एक दिन इंदिरा निकलीं। बाहर गोलियों की आवाज आई। दौड़कर देखा तो खून से लथपथ। आप लोगों ने छलनी कर दिया था। उन्हें उठाया, अस्पताल दौड़ी, उन खून से मेरे कपड़े भीगते रहे। मेरी बांहों में दम तोड़ा। आपने कभी इतने करीब से मौत देखी है?

उस दिन मेरे घर के एक नही, दो सदस्य घट गए। राजीव पूरी तरह देश के हो गए। मैंने सहा, हंसा, साथ निभाया। जो मेरा था। सिर्फ मेरा, उसे देश से बांटा। और क्या मिला। एक दिन उनकी भी लाश लौटी। कपड़े से ढंका चेहरा। एक हंसते, गुलाबी चेहरे को लोथड़ा बनाकर लौटा दिया आप सबने।

उनका आखरी चेहरा मैं भूल जाना चाहती हूं। उस रेस्टोरेंट में पहली बार की वी निगाह, वो शामें, वो मुस्कान।बस वही याद रखना चाहती हूं। इस देश में जितना वक्त राजीव के साथ गुजारा है, उससे ज्यादा राजीव के बगैर गुजार चुकी हूं। मशीन की तरह जिम्मेदारी निभाई है। जब तक शक्ति थी, उनकी विरासत को बिखरने से रोका। इस देश को समृद्धि के सबसे गौरवशाली लम्हे दिए। घर औऱ परिवार को संभाला है। एक परिपूर्ण जीवन जिया है। मैंने अपना काम किया है। राजीव को जो वचन नही दिए, उनका भी निबाह मैंने किया है।

सरकारें आती जाती है। आपको लगता है कि अब इन हार जीत का मुझ पर फर्क पड़ता है। आपकी गालियां, विदेशी होने की तोहमत, बार बाला, जर्सी गाय, विधवा, स्मगलर, जासूस … इनका मुझे दुख होता है? किसी टीवी चैनल पर दी जा रही गालियों का दुख होता है, ट्विटर और फेसबुक पर अनर्गल ट्रेंड का दुख होता है?? नही, तरस जरूर आता है।

याद रखिये, जिससे प्रेम किया हो, उसकी लाश देखकर जो दुख होता है। इसके बाद दुख नही होता। मन पत्थर हो जाता है। मगर आपको मुझसे नफरत है, बेशक कीजिये। आज ही लौट जाऊंगी। बस, राजीव लौटा दीजिए। और अगर नही लौटा सकते , तो शांति से, राजीव के आसपास, यहीं कहीं इसी मिट्टी में मिल जाने दीजिए। इस देश की बहू को इतना तो हक मिलना चाहिए शायद।”

(सोनिया गांधी के पत्र का एक अंश!)


About Author
श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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