भाजपा-कांग्रेस के वो गढ़ जो एक दूसरे के लिए भेदना मुश्किल, ये हो सकते हैं दावेदार

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भोपाल। मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी की कुछ सीटें ऐसी हैं जो दोनों ही दलों के लिए सेंध लगाने में मुश्किल साबित होती रही हैं। यहां बदलाव बहुत कम दिखाई देता है। इतिहास गवाह है कि इन सीटों पर काबिज होना दोनों दलों के लिए कठिन साबित होता रहा है। इन सीटों में भोपाल,इंदौर, छिंदवाड़ा, गुना-शिवपुरी, झाबुआ-रतलाम, भिंड, दमोह, विदिशा सीट शामिल हैं। 

दरअसल, लोकसभा चुनाव के दंगल में एक बार फिर बीजेपी और कांग्रेस विरोधी दल के गढ़ में सेंध लगाने की फिराक में हैं। हालांकि, मोदी लहर में बीजेपी ने ऐसे कर दिखाया था लेकिन फिर भी कांग्रेस का गढ़ बन चुकी छिंदवाड़ा और गुना-शिवपुरी सीट बीजेपी हार गई थी। इस बार कहा जा रहा है मोदी लहर का प्रभाव कम है ऐसे में बीजेपी के लिए भी जीत दोहराना मुश्किल है। वहीं, कांग्रेस ने भी सभी सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है। अब देखना होगा क्या दोनों ही दल अपने अपने किले ढहने से बचा पाएंगे या फिर इस बार कुछ नया इतिहास रच जाएगा। 

ये सीटों जिनपर दोनों दल चाहते हैं जीत

भोपाल लोकसभा सीट: भोपाल लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा 1989 से लगातार है। कांग्रेस इस सीट पर कई दिग्ग्जों को टिकट दे चुकी है लेकिन सबको हार का सामना ही करना पड़ा है। कहा जाता है ये सीट बीजेपी का दुर्ग बन गई है इस सीट से बीजेपी किसी भी उम्मीदवार को उतारे उसकी जीत सुनिश्���ित है। इतिहास तो यही बताता है। आलोक संजर को बीजेपी ने 2014 के चुनाव में उतारा था। उससे पहले वह सियासत का चर्चित चेहरा नहीं थे। लेकिन फिर भी उनकी झोली में जीत आई। इस सीट पर इस बार राजधानी मेयर आलोक शर्मा और पूर्व सीएम बाबूलाल गौर टिकट के लिए रेस में शामिल हैं। 1984 लोकसभा चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के के एन प्रधान ने चुनाव जीता था.उसके बाद से 2014 तक ये सीट कांग्रेस फिर कभी नहीं जीत पाई। वहीं, कांग्रेस से इस सीट पर दिग्विजय सिंह का नाम भी चर्चा में है। 

इंदौर लोकसभा सीट भी कांग्रेस के खाते में दशकों से नहीं आई है। कांग्रेस ने 1989 से इस सीट पर फतह हासिल नहीं की है। 1984 लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के प्रकाश चंद सेठी जीते थे। उसके बाद से 2014 तक ये सीट कांग्रेस फिर कभी अपने कब्जे में नहीं कर पाई। लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन का दबदबा इस सीट पर बरकरार है। इस सीट पर अटकलें हैं कि कैलाश विजयवर्गीय मैदान में उतर सकते हैं। कांग्रेस इस सीट पर कोई बड़ा चेहरा तलाश कर रही है। 

छिंदवाड़ा लोकसभा सीट-छिंदवाड़ा सीट कांग्रेस का गढ़ रही है. एक तरह से ये सीट कमलनाथ के नाम से पहचानी जाने लगी है. 1997 में हुए एक उपचुनाव को छोड़ दिया जाए तो बीजेपी को कभी इस सीट पर जीत नहीं मिली.1951 के बाद से इस सीट पर लगातार कांग्रेस का कब्ज़ा रहा.1998 से अब तक कमलनाथ लगातार इस सीट से सांसद हैं. उससे पहले भी वो 1980 से 1991 तक सांसद रहे हैं।


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