अब इस नेता पर टिकी सबकी निगाहें, क्या छोड़ेंगें सांसद या महापौर का पद, फैसला आज

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भोपाल/ग्वालियर।

रतलाम-झाबुआ सीट से जीते जीएस डामोर का फैसला हो गया है। वे सांसद बने रहेंगें और विधायक का पद छोड़ेगें। इसी के साथ अब सबकी निगाहें ग्वालियर लोकसभा सीट पर आ टिकी है। क्योंकि ग्वालियर के मेयर विवेक शेजवलकर ने लोकसभा चुनाव लड़ा और अब वो सांसद हैं, ऐसे में नियमों के तहत उन्हें एक पद अथवा एक पद की सारी सुविधाएं छोड़ना पड़ेंगी। खबर है कि उन्होंने ग्वालियर महापौर का पद छोड़ने का फैसला किया है, उन्होंने पार्टी नेतृत्व को इससे अवगत करा दिया है। अब उन्हें पार्टी की ओर से हरी झंडी मिलने का इंतजार है। वही विपक्ष की नजर अब मेयर की कुर्सी पर आ टिकी है, चुंकी नवंबर और सितंबर में नगरीय निकाय के चुनाव होने है।

दरअसल, विवेक शेजवलकर ग्वालियर के मेयर है और पार्टी ने उन्हें इस बार ग्वालियर लोकसभा सीट से चुनाव लड़वाया था और वे जीते भी थे। नियम के तहत उन्हें किसी एक पद को छोड़ना होगा, जैसे कि रतलाम झाबुआ सीट से जीएस डामोर ने विधायक पद छोड़ने का फैसला किया है। बताया जा रहा है कि शेजवलकर ने महापौर का पद छोड़ने का फैसला किया है, वे एक साथ दो पदों पर रहकर काम करने के मूड में नहीं हैं। उन्होंने पार्टी नेतृत्व को अवगत भी करा दिया है, हालांकि पार्टी की तरफ से अभी कोई जवाब नही आया है, लेकिन संभावना जताई जा रही है कि वे सांसद पद पर बने रहेंगें और महापौर का पद छोड़ेंगें।इसका ऐलान वे आज कर सकते है। ऐसे में अगर मेयर इस्तीफा देते हैं, तो राज्य सरकार किसी भी वरिष्ठ पार्षद को मेयर की कुर्सी पर बैठा सकती है. इसमें कांग्रेस के चांस सबसे ज़्यादा हैं।चूंकि नगर निगम के चुनाव में नवम्बर हैं। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार निगम के 66 में से किसी एक पार्षद को चुनाव होने तक महापौर मनोनीत कर सकती है। माना जा रहा है कि महापौर यदि पद छोड़ते हैं तो सरकार नेता प्रतिपक्ष कृष्णराव दीक्षित को इस पद पर मनोनीत कर सकती है। इसको लेकर ग्वालियर नगर निगम की सियासत में हलचल तेज हो चली है।

क्या कहता है नियम

 नगर पालिका अधिनियम 1956 की धारा 21(1) के तहत जैसे ही महापौर का पद या किसी निर्वाचित पार्षद का स्थान रिक्त हो जाता है या रिक्त घोषित कर दिया जाता है, तो राज्य सरकार ऐसे रिक्ति को भरने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग को तत्काल सूचित करेगी। इस प्रकार निर्वाचित व्यक्ति यथा स्थिति महापौर या पार्षद का पद निगम की केवल शेष कालावधि के लिए धारण करेगा। परन्तु यदि किसी नगर पालिका निगम की शेष कालावधि 6 माह से कम है तो ऐसी रिक्ति नहीं भरी जाएंगी। इसी तरह 21(2) के तहत जब तक उपधारा (1) के अधीन महापौर पद की रिक्त न भरी जाए तब तक महापौर की समस्त शक्तियां तथा कर्तव्य ऐसे निर्वाचित पार्षद द्वारा पालन किए जाएंगे जैसा कि राज्य सरकार इस निमित्त नाम निर्दिस्ट करे। निगम चुनाव चूंकि इसी साल नवंबर में होना हैं। समय 6 माह से कम बचा है। इसलिए महापौर पद के लिए चुनाव नहीं कराया जा सकेगा।

गौरतलब है कि ग्वालिय को भाजपा का गढ़ माना जाता है। बीजेपी ने चौथी बार यहां जीत हासिल की है। विवेक शेजवलकर ने कांग्रेस प्रत्याशी अशोक सिंह को 1 लाख 46 हजार 842 वोटों से हराया था। शेजवलकर को 6 लाख 27 हजार 250 वोट मिले और अशोक सिंह को 4 लाख 80 हजार 408 वोट मिले थे।1980 में भारतीय जनता पार्टी से विवेक शेजवलकर के पिता नारायण कृष्ण शेजवलकर और अशोक सिंह के पिता राजेंद्र सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे। जिसमें नारायण कृष्ण शेजवलकर ने राजेंद्र सिंह को 25 हजार वोटों से हराया था।


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