‘जब मैं दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी थी, लोग पूछ रहे थे घर कब बसाऊँगी’, महिलाओं को लेकर समाज की ‘छोटी सोच’ पर सानिया मिर्ज़ा का प्रहार

सानिया ने अपने एक्स अकाउंट पर अर्बन कंपनी का विज्ञापन शेयर किया है जिसमें महिलाओं को लेकर संकुचित धारणा को दिखाया गया है। इसपर उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए सवाल किया है कि हमारे समाज को अभी बहुत आत्मनिरीक्षण करना बाक़ी है।

Sania

Sania Mirza shared Urban company ad : सानिया मिर्ज़ा पिछले कुछ समय से अपने निजी जीवन को लेकर चर्चाओं में हैं। मशहूर होने के कुछ नुक़सान भी होते हैं और उनमें से सबसे बड़ा ये कि आपका कुछ भी निजी नहीं रह जाता। हर चीज़ पर मीडिया और लोगों की नज़रें होती हैं। लेकिन सानिया मिर्ज़ा हमेशा से एक सेल्फ़ मेड विघ्न रही हैं और उन्होंने हर हालात का मज़बूती से सामना किया है। फ़िलहाल वो फिर सुर्खियों में हैं..एक विज्ञापन को लेकर।

सानिया मिर्ज़ा ने शेयर किया अर्बन कंपनी का विज्ञापन

आपको याद होगा कुछ साल पहले एक नामी पत्रकार ने टीवी पर सानिया मिर्ज़ा से सवाल किया था कि ‘आप सेटल कब होंगी’। इसका सानिया ने बेहतरीन जवाब दिया था कि एक महिला भले ही दुनिया की नंबर वन खिलाड़ी हो, चाहे जितने ईनाम जीत लिए हो..लेकिन उसे तब तक सेटल नहीं माना जाता, जब तक वो शादी न कर ले या माँ न बन जाए। ये सवाल और जवाब उस समय काफ़ी चर्चाओं में रहे। अब एक बार फिर सानिया ने महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों, समाज का नज़रिया और लोगों के जज करने की आदत को लेकर पोस्ट की है। दरअसल, सानिया मिर्ज़ा ने अर्बन कंपनी का एक विज्ञापन अपने एक्स अकाउंट से शेयर किया है। इसमें एक महिला की कहानी दिखाई गई है जो मसाज सर्विस देती है। इस छोटे से कमर्शियल में लोगों की ‘छोटी सोच’ को दिखाया गया है। एक महिला को काम के दौरान किन किन परिस्थितियों और नज़र का सामना करना पड़ता है, इस विज्ञापन में बख़ूबी बताया है।

महिलाओं को लेकर कब ख़त्म होगी समाज की ‘छोटी सोच’ 

इस विज्ञापन को शेयर करते हुए सानिया मिर्ज़ा ने लिखा है कि ‘2005 में, मैं WTA खिताब जीतने वाली पहली भारतीय महिला थी। बड़ी बात है ना? जब मैं दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी थी. युगल में 1, लोग यह जानने को उत्सुक थे कि मैं कब घर बसाऊँगी। छह ग्रैंड स्लैम जीतना समाज के लिए पर्याप्त नहीं है। मैं उस दौर में मिले समर्थन के लिए आभारी हूं, लेकिन मदद नहीं कर सकती और सोच सकती हूं कि क्यों एक महिला की उपलब्धियां उसके कौशल और काम के बजाय लैंगिक ‘अपेक्षाओं’ और दिखावे के बारे में बातचीत को आमंत्रित करते हैं। यह विज्ञापन देख रही हूँ urbancompany_UC जिसमें ऐसी ही कुछ भावनाओं को सामने लाया है। मैं जानती हूं कि समाज के बारे में वास्तविक बातचीत करना कठिन और कभी-कभी असुविधाजनक होता है, लेकिन हम महिलाओं की सफलता के साथ कैसे जुड़ते हैं, इस पर आत्मनिरीक्षण करना शायद लंबे समय से अपेक्षित है।’ वाक़ई में ये सोचने वाली बात है कि हम तकनीकी रूप से चाहें जितने मॉडर्न हो जाएँ, लेकिन महिलाओं को लेकर आज भी समाज में कई जगह वही संकुचित सोच है। अब सानिया मिर्ज़ा ने अपनी पोस्ट के ज़रिए इस छोटी सोच और संकुचित धारणा पर प्रहार किया है।

 


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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