CHINA: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मंगलवार को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बीजिंग में मुलाकात की। यह मुलाकात इसलिए बेहद अहम मानी जा रही है क्योंकि जून 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों के बीच यह सीधे संवाद का पहला उच्चस्तरीय अवसर था। यह बैठक उस समय हुई है जब भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद के बाद रिश्तों में आई तल्खी को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं।
जयशंकर की यह यात्रा शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए है, लेकिन इसके इतर उन्होंने चीनी राष्ट्रपति से यह व्यक्तिगत भेंट की। इससे संकेत मिलते हैं कि दोनों देश आपसी रिश्तों को नई दिशा देने की इच्छाशक्ति रखते हैं।
रिश्तों को सामान्य करने की पहल
विदेश मंत्री ने मुलाकात के बाद ट्वीट किया और लिखा कि- आज सुबह बीजिंग में राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शुभकामनाएं दीं। मैंने उन्हें हमारे द्विपक्षीय रिश्तों में हाल की प्रगति के बारे में बताया। इस दिशा में हमारे नेताओं के मार्गदर्शन को मैं बहुत महत्व देता हूं।
यह बयान इस ओर इशारा करता है कि दोनों देश सिर्फ सैन्य या रणनीतिक स्तर पर नहीं, बल्कि राजनयिक और राजनीतिक स्तर पर भी रिश्तों की बहाली के लिए प्रयासरत हैं। ज्ञात हो कि गलवान संघर्ष के बाद भारत और चीन के रिश्तों में भारी तनाव आ गया था और व्यापारिक, राजनयिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी संवाद सीमित हो गया था।
गलवान संघर्ष और सीमा विवाद की पृष्ठभूमि
जून 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच संघर्ष हुआ था, जिसमें 20 भारतीय जवान शहीद हुए थे और चीन की ओर भी हताहतों की पुष्टि बाद में हुई थी। यह दशकों में सबसे गंभीर सैन्य झड़प थी। इसके बाद से दोनों देशों के बीच सैन्य कमांडर स्तर की कई दौर की बातचीत हुई, लेकिन स्थायी समाधान नहीं निकल पाया। भारत लगातार यह दोहराता रहा है कि सीमा पर शांति और स्थिरता ही द्विपक्षीय रिश्तों का आधार हो सकती है।
जयशंकर पहले भी कह चुके हैं कि-सीमा पर शांति के बिना भारत-चीन संबंध सामान्य नहीं हो सकते।
मुलाकात के निहितार्थ क्या हैं?
इस बैठक के राजनयिक और रणनीतिक दोनों मायने हैं। यह मुलाकात यह दिखाती है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग और मोदी सरकार के बीच संवाद के रास्ते खुले हैं। दोनों देश क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर बढ़ती चुनौतियों को लेकर अधिक सामंजस्य के लिए तैयार हो सकते हैं, खासकर एससीओ जैसे बहुपक्षीय मंचों पर। इस संवाद से LAC पर डिसएंगेजमेंट की संभावनाओं को भी बल मिल सकता है। हालांकि भारत की नीति स्पष्ट रही है कि कोई भी वास्तविक प्रगति तब होगी जब सीमा विवाद का समाधान हो, और पूर्वी लद्दाख में यथास्थिति बहाल की जाए।
संवाद के साथ सतर्कता भी जरूरी
जयशंकर-शी जीनपिंग भेंट से यह संकेत जरूर मिला है कि भारत और चीन फिर से संवाद की पटरी पर लौटना चाहते हैं, लेकिन भारत की तरफ से यह स्पष्ट है कि बातचीत सम्मान और आत्मरक्षा के आधार पर होगी। अभी तक चीन की ओर से इस भेंट को लेकर कोई विस्तृत आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन बीजिंग में इस भेंट को सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
आने वाले समय में इस मुलाकात के असर को सेना स्तर की बातचीत, व्यापारिक समझौतों, और सीमा स्थिरता जैसे क्षेत्रों में महसूस किया जा सकेगा या नहीं, यह देखना अहम होगा। फिलहाल यह मुलाकात भारत-चीन रिश्तों में एक संवेदनशील लेकिन संभावनाओं से भरा मोड़ है, जहां इतिहास के घाव भी हैं और भविष्य के रास्ते भी।





