Indian Law: आपने अपने जीवन में कभी न कभी सुसाइड शब्द सुना ही होगा। कभी न कभी आपके पास ऐसी खबर आई ही होगी जब आपके किसी जान पहचान वाले ने या किसी व्यक्ति ने सुसाइड किया हो। लेकिन क्या आपने यह सोचा है कि व्यक्ति जब सुसाइड करता है और उसके द्वारा कोई सुसाइड नोट लिखा जाता हैं वह कानून के लिए कितना महत्वपूर्ण सबूत होता हैं? या फिर अपने कभी यह सोचा है कि सुसाइड करने के बाद व्यक्ति अगर किसी का नाम सुसाइड नोट में लिख देता हैं तो क्या वाकई उसे सजा दी जाती हैं? यदि आपके मन में भी कभी ऐसे सवाल उठे हो तो आज हम इस खबर में आपके इन सवालों का जबाव देने वाले हैं।
दरअसल जब किसी व्यक्ति द्वारा सुसाइड नोट में अन्य किसी व्यक्ति का नाम लिख दिया जाता है, तो जिसका नाम लिखा जाता है वो अत्यधिक परेेशान हो जाता है। दरअसल इसे ऐसा लगता हैं कि सुसाइड नोट पर नाम होने से सजा मिलना तय होता है। ऐसे में उसे कानून से परिचित होना जरूरी होता हैं।
जानिए क्या कहता है इसपर कानून?
दरअसल हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक खुदकुशी के मामले में सुसाइट नोट पर नाम का लिखने के बिंदु पर एक महत्वपूर्ण बात कही है दरअसल कोर्ट का कहना है कि ‘किसी व्यक्ति का नाम अगर किसी सुसाइड नोट में लिखा हैं तो नाम के उल्लेख मात्र से आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता हैं। और न ही यह सजा का सामना करने का एकमात्र आधार हो सकता है।’ दरअसल अदालत का कहना है कि आरोपी के इन आरोपों को प्रत्येक मामले की परिस्थितियों के अनुसार ही देखा जाना चाहिए।
जानकारी के अनुसार यह टिपण्णी न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने की हैं। दरअसल कोर्ट का कहना हैं कि ‘भारतीय दंड संहिता की धारा-306 के चलते आरोपी और आत्महत्या करने वाले मृतक के कारणों के बीच किसी वजह से कोई संबंध या निकटता है तो उसे देखा जाना जरूरी हैै। दरअसल इससे साफ होता हैं की सुसाइड नोट में नाम होने मात्र से किसी व्यक्ति को सजा नहीं दी जाती हैं। उसकी पूर्ण रूप से जाँच की जाती हैं उसके बाद ही कानून निर्णय लेता हैं।