Anti Perfection Movement : कहते हैं इंसान गलतियों का पुतला है। लेकिन साथ ही सीखने और खुद को बेहतर करने की कोशिशें भी जारी रहती हैं। ये अच्छी बात भी है कि हम अपनी कमियों, गलतियों को सुधारें और आत्म-विकास की दिशा में आगे बढ़ें। लेकिन, इस कोशिश में कहीं ऐसा न हो कि परफेक्शन की चाह में हम खुद को भुला ही बैठें। इसीलिए पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर कई लोग ‘एंटी-परफेक्शन मूवमेंट’ के पक्ष में आवाज़ उठा रहे हैं।
ये ऐसा आंदोलन है जो ज़मीन के साथ साथ सोशल मीडिया पर भी पॉपुलर हुआ है। इसके तहत विभिन्न कार्यशालाओं, सेमिनारों और ऑनलाइन अभियानों का आयोजन किया जाता है, जहां लोग अपने अनुभव साझा करते हैं और खामियों को स्वीकारने की प्रक्रिया में एक-दूसरे की मदद करते हैं। साथ ही, कला, लेखन और संगीत के माध्यम से भी इस संदेश को फैलाया जा रहा है।
क्या है Perfectionist होने की परिभाषा
परफेक्शनिस्ट क्या होता है ? दरअसल ये ऐसा होने की चाह है जहां व्यक्ति हर काम में पूर्णता (परफेक्शन) चाहता है। वह अपने या दूसरों के कार्यों में किसी भी प्रकार की कमी या खामी को स्वीकार नहीं कर पाता। परफेक्शनिस्ट लोग हर चीज को सर्वोत्तम तरीके से करना चाहते हैं और इस प्रक्रिया में अक्सर बहुत कठोर मानक तय कर लेते हैं।
Anti-Perfection Movement : क्यों हुई ये पहल
लेकिन परफेक्शन की इच्छा व्यक्ति को अक्सर सामान्य नहीं रहने देती। परफेक्शनिस्ट बनने के पीछे उद्देश्य सकारात्मक हो सकता है, लेकिन इसकी अति से मानसिक और भावनात्मक नुकसान भी हो सकते हैं। इसीलिए, खुद को स्वीकारते हुए, अपने प्रयासों और परिणामों से संतुष्ट रहना महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि ‘एंटी-परफेक्शन मूवमेंट’ के सामने आने का। ये एक सामाजिक और सांस्कृतिक पहल है, जिसका उद्देश्य पूर्णता की खोज की बजाय खामियों और अपूर्णताओं को स्वीकारना और उनका उत्सव मनाना है। यह आंदोलन इस विचारधारा पर आधारित है कि पूर्णता की अपेक्षा व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य और आत्म-सम्मान पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
आधुनिक समाज में, खासकर सोशल मीडिया के प्रसार के साथ अक्सर ही परफेक्शन या पूर्णता की छवि को बढ़ावा दिया जाता है। लोग अपने जीवन के केवल सकारात्मक पहलुओं को साझा करते हैं, जिससे एक आदर्श छवि प्रस्तुत होती है। इससे अन्य लोगों में अपने जीवन की तुलना करने पर हीनभावना और आत्म-संदेह उत्पन्न हो सकता है। ‘एंटी-परफेक्शन मूवमेंट’ इस प्रवृत्ति के विरुद्ध खड़ा होता है और वास्तविकता को स्वीकारने की प्रेरणा देता है।
‘एंटी-परफेक्शन मूवमेंट’ का उद्देश्य
यह आंदोलन ये नहीं कहता कि हमें अपने आप में सुधार की कोशिश नहीं करनी चाहिए, बल्कि ये सिखाता है कि पूर्णता की अवास्तविक अपेक्षाओं से बचकर, अपनी खामियों को स्वीकारते हुए आत्म-विकास की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
- खुद को स्वीकारना : अपनी खामियों और कमजोरियों को स्वीकारना और उन्हें जीवन का हिस्सा मानना।
- मानसिक स्वास्थ्य में सुधार : पूर्णता की अपेक्षा से उत्पन्न तनाव और चिंता को कम करना।
- सकारात्मक आत्म-छवि : आप जैसे हैं, अपने आप को वैसे स्वीकारकर आत्म-सम्मान को बरकरार रखना।
कई सेलिब्रिटीज़ ने किया समर्थन
‘एंटी-परफेक्शन मूवमेंट’ में कई अंतरराष्ट्रीय हस्तियों ने भाग लिया है, जिन्होंने अपनी खामियों को स्वीकारते हुए समाज में सकारात्मक संदेश फैलाया है। ब्रिटिश अभिनेत्री और सामाजिक कार्यकर्ता एम्मा वाटसन ने महिलाओं के प्रति समाज की पूर्णता की अपेक्षाओं के खिलाफ आवाज उठाई है। उन्होंने आत्म-स्वीकृति और आत्म-प्रेम को प्रोत्साहित किया है। अभिनेत्री केइरा नाइटली ने फोटोशॉप और डिजिटल रूप से एडिटेड तस्वीरों के खिलाफ अपने विचार प्रकट किए हैं, जिससे वास्तविक सौंदर्य और खामियों को स्वीकारने का संदेश मिलता है।
अभिनेत्री और कार्यकर्ता जमीला जमील ने ‘I Weigh’ नामक अभियान शुरू किया, जो लोगों को उनके वजन के बजाय उनकी उपलब्धियों और गुणों के आधार पर मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करता है। सिंगर गायिका लिज़ो ने अपने शरीर के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए आत्म-प्रेम और स्वीकृति का संदेश दिया है, जिससे समाज में शरीर की विविधता को स्वीकारने की प्रेरणा मिलती है।