Bubble Wrap : दीवारों को सुंदर बनाने के लिए हुआ था अविष्कार, बबल रैप फोड़ने में क्यों आता है मज़ा

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। हम कोई भी कांच का सामान या फिर नाजुक चीज़ खरीदते हैं तो वो बबल रैप (bubble wrap) में पैक करके मिलती है। इसे देखते ही हमारा मन बबल्स को फोड़ने का करने लगता है। इसकी पट-पट आवाज जाने मन को क्या सुकून देती है। चाहे बच्चा हो या बड़ा, सभी को इसे फोड़ने में खासा मजा आता है। लेकिन ये बबल रैप हमारे पर्यावरण के लिए बिल्कुल ठीक नहीं हैं।

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बबल रैप का अविष्कार 1957 में हुआ और Al Fielding और Marc Chavannes ने इसे एक वॉलपेपर के तौर पर बनाया था। उनका आइडिया इसे टेक्सचर्ड वॉलपेपर के रूप में क्रिएट करना था लेकिन ये लोगों को बिल्कुल पसंद नहीं आया। प्रोडक्ट जिस उद्देश्य के लिए बनाया गया वो तो फेल हो गया, लेकिन लोग इसमें सामान लपेटने लगे। इसके बाद दोनों ने इसका सुरक्षा फीचर आईबीएम (IBM) को बेच दिया और उन्होने इसका यूज़ अपने कंप्यूटर्स की पैकिंग के लिए करना शुरू कर दिया। तभी से ये क पैकिंग मटेरियल के रूप में हिट हो गया।

ये एक तरह की प्लास्टिक की थैली है जिसमें छोटी छोटी टैब्लेट्स में हवा भरी रहती है। ये काफी स्पंजी होता है। एयर फिल होने के कारण ये सामान को टूट फूट से बचाता है। एक स्टडी में पता चला है कि हमारे हाथों में जब कोई स्पंजी वस्तु आती है तो दिमाग हमें उससे खेलने या फोड़ने के लिए डायरेक्ट करता है। इसी तरह तनाव की स्थिति में भी स्पंजी वस्तुओं को पकड़ना, दबाना या उन्हें फोड़ने में हमें रिलेक्स फील होता है। दरअसल इससे हमारा दिमाग डायवर्ट होता है और सारा ध्यान बबल रैप को फोड़ने में लग जाता है और इसमें हमें मजा भी आने लगता है। इसीलिए किसी के भी हाथों में बबल रैप आता है तो वो सब काम छोड़कर उसे फोड़ने लगता है।

भले ही बबल रैप से सामान सुरक्षित रहता हो या ये हमें थोड़ा दिमागी आराम देता हो लेकिन पर्यावरण के लिए ये काफी नुकसानदेह है। इसे रिसाइकिल करना बहुत मुश्किल काम है। दुनिया में जितना बबल रैप बनता है उसका 2 से 3 प्रतिशत ही रिसाइकिल किया जाता है। असल में इसे Low-Density Polyethylene (LDPE) से बनाया जाता है और अन्य तरह के दूसरे प्लास्टिक के मुकाबले इसे मशीन में डालकर रिसाइकिल करना काफी मुश्किल है। और अगर इसे कचरे में फेंक दिया जाए तो लैंडफिल में इसे गलने में 10 से लेकर 1000 साल तक लग सकते है। इसीलिए बबल रैप हमारे पर्यावरण की सेहत के लिए अच्छा नहीं है। अच्छी बात ये है कि आजकल इसके कई विकल्प भी बाजार में आ गए हैं। पेपर  या कपड़े की कतरन या फिर इनमें पेपर से बना हनीकॉम्ब रैप  (honeykomb wrap) है, जिसका प्रयोग किया जा सकता है। ये ये 100 फ़ीसदी बायोडिग्रेडेबल मटेरियल है जो घुलनशील हैं। इसलिए हर जगह से प्लास्टिक को जितना हटाया जा सके, हटाना चाहिए।

 


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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