Discover the Origin of the Seven Musical Notes : संगीत इस सृष्टि की सुंदरतम कृतियों में से एक है। ये हमारे लिए एक उपहार है। संगीत को लेकर दुनियाभर में कई मान्यताएं और दृष्टिकोण हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत के सिद्धांतों में यह माना जाता है कि संगीत की उत्पत्ति सरगम के सात स्वरों से हुई है जो कि ‘सा, रे, गा, मा, पा, धा, नी’ हैं। ये सात स्वर या “स्वरों का तात्त्विक रूप” ब्रह्मांड की ध्वनियों और ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं।
भारतीय शास्त्रीय संगीत में सात स्वरों के समूह को सप्तक कहते हैं और ये स्वर हैं – षड्ज (सा), ऋषभ (री), गांधार (गा), मध्यमा (मा), पंचम (प), धैवत (धा), निषाद (नी)। लेकिन क्या आपको ये पता है कि हमारे यहां ये भी मान्यता है कि ये सातों स्वर अलग अलग पशु और पक्षियों से लिए गए हैं। भारतीय संगीत में स्वरों को विशेष महत्व दिया गया है और इनकी उत्पत्ति विभिन्न प्राकृतिक ध्वनियों और जीवों के स्वरों से जुड़ी बताई जाती है।
जीवन का सौंदर्य है संगीत
संगीत मानव जीवन का एक अनमोल और अपरिहार्य हिस्सा है। हम अपने जीवन के विभिन्न भावों के संगीत के जरिए महसूस करते हैं, व्यक्त करते हैं। प्रकृति के कण कण में संगीत है। यह एक ऐसी भाषा है जिसे शब्दों की आवश्यकता नहीं होती, फिर भी यह हर व्यक्ति तक गहराई से पहुंचता है। संगीत का सौंदर्य उसकी शुद्धता, उसकी संरचना और उसकी भावनाओं में निहित होता है।
भारतीय संगीत में स्वरों का महत्व
बात करें भारतीय शास्त्रीय संगीत की तो इसमें सात स्वर वह मूल ध्वनियाँ हैं, जिनका उपयोग संगीत की रचनाओं में किया जाता है। ये सात स्वर भारतीय संगीत में अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं और एक दूसरे के साथ मिलकर राग और ध्वनि की रचना करते हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत में इन सात स्वरों को “सा, रे, गा, मा, पा, धा, नी” के रूप में जाना जाता है, जो पश्चिमी संगीत के सात स्वरों “C, D, E, F, G, A, B” के समकक्ष होते हैं। भारतीय संगीत के अनुसार स्वरों के उच्चारण स्थानों की बात की जाए तो इन्हें विभिन्न शारीरिक स्थानों से जोड़ा जाता है।मान्यतानुसार षड्ज गले से उत्पन्न होता है। ऋषभ नाभि से सिर तक जाता है। गांधार गले के ऊपरी हिस्से से और मध्यम तालु से, पंचम जीभ से, धैवत दांतों से और निषाद नाक से उत्पन्न होता है।
कौन से प्राणी से उत्पन्न हुए हैं सात स्वर
अब हम आपको बताने जा रहे हैं कि भारतीय शास्त्रीय संगीत में इन सात स्वरों की उत्पत्ति को किन प्राणियों से जोड़कर देखा गया है। मान्यतानुसार सा, रे, गा, मा, पा, धा, नी क्रमशः मोर, गौ, बकरी, क्रौंच, कोयल, घोड़े और हाथी के स्वर से लिए गए हैं। सप्तक में 7 स्वरों का वर्णन इस प्रकार किया गया है:
1. षड्ज (Sa) – यह सबसे पहला स्वर है, जिसे “सुर” की उत्पत्ति कहा जाता है। इसे मोर की ध्वनि से जोड़ा जाता है। नासा, कंठ, उर, तालु, जीभ और दाँत इन छह स्थानों में उत्पन्न होने के कारण पहला स्वर षड्ज कहलाता है।
2. ऋषभ (Re) – यह स्वर नाभि से सिर तक पहुंचने वाली ध्वनि का प्रतीक है, और इसे गौ यानी गाय की ध्वनि से जोड़ा जाता है।
3. गांधार (Ga) – इसे बकरी के स्वर से जोड़ा जाता है।
4. मध्यम (Ma) – यह स्वर क्रौंच (सारस की तरह का पक्षी) के स्वर से संबंधित है।
5. पंचम (Pa) – आपने ज़रूर कभी न कभी किसी की आवाज़ सुनकर उसे कोयल की तरह मीठा पाया होगा। पंचम स्वर को कोयल की ध्वनि से जोड़ा जाता है।
6. धैवत (Dha) – यह स्वर घोड़े के स्वर से उत्पन्न हुआ माना गया है।
7. निषाद (Ni) – इसे हाथी की ध्वनि से जोड़ा जाता है।
संगीत का सौंदर्य सिर्फ इससे मिलने वाले आनंद में नहीं है, बल्कि ये उपचार का भी काम करता है। वैज्ञानिक शोधों ने साबित किया है कि संगीत का सुनना तनाव कम करने, मन की शांति को बढ़ावा देने और मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। कई स्थानों पर म्यूज़िक थेरेपी दी जाती है। संगीत थेरेपी मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं जैसे तनाव, चिंता, अवसाद और मानसिक थकावट को कम करने में मदद करती है। संगीत सुनना, गाना या किसी वाद्ययंत्र पर संगीत बजाना मानसिक तनाव को दूर करता है और व्यक्ति को भावनात्मक राहत देता है। उदाहरण के तौर पर, धीमी और शांतिपूर्ण संगीत को सुनने से मस्तिष्क के उस हिस्से को शांत किया जा सकता है जो चिंता और तनाव से संबंधित होता है।
(डिस्क्लेमर : ये लेख विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। हम इसे लेकर कोई दावा नहीं करते हैं।)