Driving Licence: आप यह तो जानते ही होंगे कि किसी भी वाहन को चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस की आवश्यकता होती है, जो किसी भी देश के नागरिकों को प्राप्त करना अनिवार्य होता है। क्योंकि इसके बिना गाड़ी चलाना कानूनी अपराध माना जाता है। वहीं भारत में, ड्राइविंग लाइसेंस के लिए कुछ नियमों का पालन करना जरूरी होता है, जैसे कि नागरिकता और आयु संबंधित शर्तें। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दिव्यांग जनों के लिए ड्राइविंग लाइसेंस बनाने की प्रक्रिया कैसी होती है? दरअसल आपको बता दें कि यह विशेष तरीके से होती है। तो चलिए आज हम इस खबर में इसके बारे में जानते हैं।
सबसे पहले करें अपने वाहन को मोडिफाइड:
दरअसल दिव्यांग लोगों के लिए नार्मल गाड़ी चलाना मुश्किल होता है, इसलिए वे नार्मल गाड़ियों की जगह मोडिफाइड वाहन का इस्तेमाल कर सकते हैं। जानकारी के अनुसार वे अपनी कार या दो पहिया वाहन को अपने आवश्यकताओं के अनुसार समायोजित कर सकते हैं, जिससे उनके लिए गाड़ी चलाना आसान हो जाता है।
जब आप ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन करें, तो आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आपका वाहन डिसेबिलिटी फ्रेंडली है, जिसके लिए आपको कुछ आवश्यक प्रक्रियाएं पूरी करनी होंगी। पहले, इस तरह के वाहनों को ‘इनवेलिड कैरिज’ कहा जाता था, लेकिन अब इसे ‘एडेप्टेड व्हीकल’ या ‘अनुकूलित’ वाहन कहा जाता है।
क्या नार्मल ड्राइविंग लाइसेंस से अलग होती है प्रोसेस?
जानकारी के अनुसार जब आप अपने अडॉप्टेड व्हीकल के ऑप्शन के माध्यम से ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए आवेदन करते हैं, तो यह प्रक्रिया बाकी लाइसेंस की प्रक्रिया की तरह ही होती है। जैसे सभी प्रक्रिया होती है जिसमें आपको सबसे पहले लर्निंग लाइसेंस ही दिया जाता है, जिसके एक माह बाद ही आप ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकते हैं। दरअसल इसके लिए, आपको आपके अडॉप्टेड व्हीकल के साथ आरटीओ ऑफिस में जाना होगा और वहां आपको गाड़ी चला कर दिखानी होगी। जब आपका टेस्ट सफल होता है, तो आपको ड्राइविंग लाइसेंस मिल जाता है।
जानिए किन दस्तावेज की होती हैं जरूरत:
दिव्यांग व्यक्तियों को ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने के लिए, आरटीओ दफ्तर में कुछ आवश्यक दस्तावेज जमा करने होते हैं। इनमें उनका फिजिकल डिसेबिलिटी सर्टिफिकेट (यानी विकलांगता प्रमाण पत्र) शामिल होता है। साथ ही, उन्हें डिसेबिलिटी आईडी, एडेप्टेड व्हीकल की चेसिस नंबर की दो कॉपी भी जमा करनी होती है।