गणगौर पूजा का महत्व सनातन धर्म में बेहद ख़ास माना जाता है। यह पर्व ख़ास तौर पर राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और कई अन्य राज्यों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र और सुख समृद्धि के लिए व्रत रखती है। वहीं कुंवारी लड़कियाँ मनचाहा वर पाने के लिए इस व्रत को करती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गणगौर व्रत करने से वैवाहिक जीवन ख़ुशहाल रहता है, अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। गणगौर पूजा में 16 अंक का विशेष महत्व है, माता गौरा को शृंगार की 16 सामग्री चढ़ाई जाती है। विधि विधान से ईसर यानी भगवान शिव और ग़ौर बियानी माता पार्वती की पूजा की जाती है।

गणगौर पूजा में व्रत कथा का पाठ करना क्यों जरुरी है?
गणगौर पूजा में व्रत कथा पाठ करना बहुत ज़रूरी माना जाता है, क्योंकि बिना कथा सूने और पढ़ें यह व्रत अधूरा माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को करने इसे भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है, अगर आपको भी गणगौर व्रत रख रही है, तो पूजा के दौरान इस कथा का पाठ अवश्य करें।
गणगौर पूजा में किस व्रत कथा का पाठ करें? (Gangaur)
पौराणिक कथा के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर भगवान शिव, माता पार्वती और नारदमुनि एक गाँव पहुँचे। वहाँ कि ग़रीब महिलाओं ने श्रद्धा से उनकी पूजा की, जिसे देखकर माता पार्वती ने उन पर सुहाग रस छिड़क दिया। इससे उन्हें अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इसके बाद से गाँव की अमीर महिलाओं ने भी सोने की शादी की थाली से पूजा की, शिवजी ने माता पार्वती से पूछो कि अब इनके लिए क्या बचा है
माँ पार्वती ने कहा कि महिलाओं को बाहरी चमक धमक का सौभाग्य मिला है लेकिन असली सौभाग्य पाने के लिए उन्हें त्याग और सेवा करनी होगी। फिर उन्होंने अपनी उंगली चीरकर अपने रक्त से उन पर सुहाग रस छिड़का, जिससे उन्हें भी सच्चा सौभाग्य प्राप्त हुआ।
इसके बाद माता पार्वती नदी में स्नान करने गई और पूजा कर प्रसाद ग्रहण किया। पूजा के दौरान पार्थिव बिल्डिंग से भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होने माता पार्वती को वरदान दिया की जो भी स्त्री इस दिन श्रद्धा और विधिपूर्वक पूजा करेगी, उसका पति दीर्घायु होगा और उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। तभी से गणगौर पूजा का यह पावन पर्व मनाया जाने लगा।