Independence Day 2023 : आजादी के इस खास दिन पढ़िये देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत महत्वपूर्ण कविताएं

Independence Day 2023 : हमें अपनी स्वतंत्रता लंबे संघर्ष के बाद मिली है। आजादी की लड़ाई में अलग अलग तरह के, क्षेत्र के लोगों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। आजादी से पहले और बाद में भी लोगों में ऊर्जा भरने और देशभक्ति की भावना जगाने में साहित्यकारों ने अहम योगदान दिया है। खासकर कवियों ने अपनी देशभक्ति की कविताओं से लोगों में नई चेतना और जागरूकता लाने का जरुरी काम किया है। आज हम आपके लिए ऐसी ही कुछ प्रसिद्ध और अहम कविताएं लेकर आए हैं।

ध्वजा वंदना

नमो, नमो, नमो…

नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!

नमो नगाधिराज-शृंग की विहारिणी!

नमो अनंत सौख्य-शक्ति-शील-धारिणी!

प्रणय-प्रसारिणी, नमो अरिष्ट-वारिणी!

नमो मनुष्य की शुभेषणा-प्रचारिणी!

नवीन सूर्य की नई प्रभा, नमो, नमो!

नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!

 

हम न किसी का चाहते तनिक, अहित, अपकार

प्रेमी सकल जहान का भारतवर्ष उदार

सत्य न्याय के हेतु, फहर फहर ओ केतु

हम विरचेंगे देश-देश के बीच मिलन का सेतु

पवित्र सौम्य, शांति की शिखा, नमो, नमो!

नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!

 

तार-तार में हैं गुंथा ध्वजे, तुम्हारा त्याग

दहक रही है आज भी, तुम में बलि की आग

सेवक सैन्य कठोर, हम चालीस करोड़

कौन देख सकता कुभाव से ध्वजे, तुम्हारी ओर

करते तव जय गान, वीर हुए बलिदान

अंगारों पर चला तुम्हें ले सारा हिन्दुस्तान!

प्रताप की विभा, कृषानुजा, नमो, नमो!

नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!

रामधारी सिंह दिनकर

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15 अगस्त 1947

चिर प्रणम्य यह पुण्य अहन्, जय गाओ सुरगण,

आज अवतरित हुई चेतना भू पर नूतन!

नव भारत, फिर चीर युगों का तमस आवरण,

तरुण अरुण सा उदित हुआ परिदीप्त कर भुवन!

सभ्य हुआ अब विश्व, सभ्य धरणी का जीवन,

आज खुले भारत के सँग भू के जड़ बंधन!

शांत हुआ अब युग-युग का भौतिक संघर्षण

मुक्त चेतना भारत की यह करती घोषण!

 

आम्र मौर लाओ हे, कदली स्तंभ बनाओ,

ज्योतित गंगा जल भर मंगल कलश सजाओ!

नव अशोक पल्लव के बंदनवार बँधाओ,

जय भारत गाओ, स्वतंत्र जय भारत गाओ!

उन्नत लगता चंद्र कला स्मित आज हिमाचल,

चिर समाधि से जाग उठे हों शंभु तपोज्वल!

लहर-लहर पर इंद्रधनुष ध्वज फहरा चंचल,

जय निनाद करता, उठ सागर, सुख से विह्वल!

 

धन्य आज का मुक्ति दिवस, गाओ जन-मंगल,

भारत लक्ष्मी से शोभित फिर भारत शतदल!

तुमुल जयध्वनि करो, महात्मा गाँधी की जय,

नव भारत के सुज्ञ सारथी वह निःसंशय!

राष्ट्र नायकों का हे पुनः करो अभिवादन,

जीर्ण जाति में भरा जिन्होंने नूतन जीवन!

स्वर्ण शस्य बाँधो भू वेणी में युवती जन,

बनो बज्र प्राचीर राष्ट्र की, मुक्त युवकगण!

लोह संगठित बने लोक भारत का जीवन,

हों शिक्षित संपन्न क्षुधातुर नग्न भग्न जन!

मुक्ति नहीं पलती दृग जल से हो अभिसिंचित,

संयम तप के रक्त स्वेद से होती पोषित!

मुक्ति माँगती कर्म वचन मन प्राण समर्पण,

वृद्ध राष्ट्र को वीर युवकगण दो निज यौवन!

 

नव स्वतंत्र भारत को जग हित ज्योति जागरण,

नव प्रभात में स्वर्ण स्नात हो भू का प्रांगण!

नव जीवन का वैभव जाग्रत हो जनगण में,

आत्मा का ऐश्वर्य अवतरित मानव मन में!

रक्त सिक्त धरणी का हो दुःस्वप्न समापन,

शांति प्रीति सुख का भू स्वर्ग उठे सुर मोहन!

भारत का दासत्व दासता थी भू-मन की;

विकसित आज हुईं सीमाएँ जग जीवन की!

 

धन्य आज का स्वर्ण दिवस, नव लोक जागरण,

नव संस्कृति आलोक करे जन भारत वितरण!

नव जीवन की ज्वाला से दीपित हों दिशि क्षण

नव मानवता में मुकुलित धरती का जीवन!

सुमित्रानंदन पंत

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भारत माता का मंदिर यह

भारत माता का मंदिर यह
समता का संवाद जहाँ,
सबका शिव कल्याण यहाँ है
पावें सभी प्रसाद यहाँ ।

जाति-धर्म या संप्रदाय का,
नहीं भेद-व्यवधान यहाँ,
सबका स्वागत, सबका आदर
सबका सम सम्मान यहाँ ।
राम, रहीम, बुद्ध, ईसा का,
सुलभ एक सा ध्यान यहाँ,
भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के
गुण गौरव का ज्ञान यहाँ ।

नहीं चाहिए बुद्धि बैर की
भला प्रेम का उन्माद यहाँ
सबका शिव कल्याण यहाँ है,
पावें सभी प्रसाद यहाँ ।

सब तीर्थों का एक तीर्थ यह
ह्रदय पवित्र बना लें हम
आओ यहाँ अजातशत्रु बन,
सबको मित्र बना लें हम ।
रेखाएँ प्रस्तुत हैं, अपने
मन के चित्र बना लें हम ।
सौ-सौ आदर्शों को लेकर
एक चरित्र बना लें हम ।

बैठो माता के आँगन में
नाता भाई-बहन का
समझे उसकी प्रसव वेदना
वही लाल है माई का
एक साथ मिल बाँट लो
अपना हर्ष विषाद यहाँ
सबका शिव कल्याण यहाँ है
पावें सभी प्रसाद यहाँ ।

मिला सेव्य का हमें पुज़ारी
सकल काम उस न्यायी का
मुक्ति लाभ कर्तव्य यहाँ है
एक एक अनुयायी का
कोटि-कोटि कंठों से मिलकर
उठे एक जयनाद यहाँ
सबका शिव कल्याण यहाँ है
पावें सभी प्रसाद यहाँ ।

मैथिलीशरण गुप्त

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वीरों का कैसा हो वसंत?

वीरों का कैसा हो वसंत?

आ रही हिमाचल से पुकार,

है उदधि गरजता बार-बार,

प्राची, पश्चिम, भू, नभ अपार,

सब पूछ रहे हैं दिग्-दिगंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

 

फूली सरसों ने दिया रंग,

मधु लेकर आ पहुँचा अनंग,

वधु-वसुधा पुलकित अंग-अंग,

हैं वीर वेश में किंतु कंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

 

भर रही कोकिला इधर तान,

मारू बाजे पर उधर गान,

है रंग और रण का विधान,

मिलने आये हैं आदि-अंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

 

गलबाँहें हों, या हो कृपाण,

चल-चितवन हो, या धनुष-बाण,

हो रस-विलास या दलित-त्राण,

अब यही समस्या है दुरंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

 

कह दे अतीत अब मौन त्याग,

लंके, तुझमें क्यों लगी आग?

ऐ कुरुक्षेत्र! अब जाग, जाग,

बतला अपने अनुभव अनंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

सुभद्रा कुमारी चौहान

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पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,

चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।

मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक

माखनलाल चतुर्वेदी

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About Author
श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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