Diwali 2021 : कहीं पूर्वजों की पूजा तो कहीं गौ पूजा, यहाँ शुरू होता है नया साल

Atul Saxena
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भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। दिवाली (Diwali) का त्योहार रोशनी, उल्लास और उमंग का त्योहार है। ये पूरे देश में मनाया जाता है लेकिन इसका रंग देश के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग होता है। दिवाली के दिन देश के अधिकांश हिस्सों में मां लक्ष्मी की पूजा होती है लेकिन देश के कुछ राज्य ऐसे हैं जहाँ ये दिन अलग अलग तरीके से मनाया जाता है।

वाराणसी में मनाते हैं देव दीपावली 

वाराणसी में दिवाली तो मानते ही हैं लेकिन यहाँ देव दीपावली का बहुत महत्व हैं। मान्यता है कि इस दिन देवी देवता गंगा जी में डुबकी लगाने धरती पर आते हैं। इसलिए दिवाली के दिन गंगा घात पर लोग प्रार्थना करने पहुँचते हैं और दीये लगाते हैं।  घाटों के आसपास रंगोली बनाई जाती हैं फूलमाला से सजावट की जाती है। डिव दीपावली कार्तिक मास की पूर्णिमा को होती है जो दिवाली के 15 दिन बाद आती है।

बंगाल में ऐसे मनाते हैं दिवाली 

बंगाल में दिवाली के दिन मां काली की पूजा की जाती है।  मां काली को हिबिस्कस के फूल चढ़ाये जाते हैं , मंदिरों में मां काली को मिठाई, दाल, चावल मछली का भोग लगाया जाता है। यहाँ काली पूजा से एक रात पहले लोग अपने घरों के  बाहर 14 दीये जलाकर भूत चतुर्दशी अनुष्ठान करते हैं मान्यता है कि ऐसा करने से बुरी शक्तियां दूर भागती हैं।

यहाँ होती है पूर्वजों की पूजा 

ओडिशा में दिवाली के दिन लोग कौरिया काठी करते हैं यह एक ऐसा अनुष्ठान है जिसमें लोग स्वर्ग में बैठे अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं।  अपने पूर्वजों को बुलाने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए जूट की छड़ें जलाते हैं दिवाली के दिन यहाँ के लोग मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और मां काली की पूजा करते हैं।

महाराष्ट्र में होती है गायों की पूजा 

महाराष्ट्र में दिवाली महोत्सव की शुरुआत वासु बरस की रस्म से होती है।  इसमें गायों की पूजा की जाती है।  दिवाली वाले दिन मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं और पति पत्नी के प्यार और विश्वास को बढ़ाने के लिए “दिवाली चा पड़वा” मनाते हैं।  यहाँ ये त्योहार “भाव बीज” और “तुलसी विवाह” के साथ समाप्त होता है।

यहाँ दिवाली एक साथ शुरू होता है नया साल 

दिवाली के साथ ही गुजरात में पुराना साल ख़त्म हो जाता है और नया साल शुरू हो जाता है यहाँ के लोग दिवाली के अगले दिन नया साल “बेस्तु बरस”  मनाते हैं।  उत्सव की शुरुआत वाघ बरस से होती है उसके बाद धनतेरस, काली चौदस, दिवाली, बेस्तु बरस  और भाई बीज के पर्व आते हैं।


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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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