डेस्क रिपोर्ट। नवरात्र माँ दुर्गा की आराधना का पर्व माना जाता है और मान्यता है कि नवरात्र के व्रत जब तक कन्या पूजन ना किया जाए तब तक पूरे नहीं होते, इसीलिए नवरात्र में कन्या पूजन का विशेष महत्व है, कन्या पूजन का धार्मिक महत्व भी है माना जाता है कि कुंवारी कन्याएं माता के समान ही पवित्र और पूजनीय होती हैं। दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं। यही कारण है कि इसी उम्र की कन्याओं के पैरों का विधिवत पूजन कर भोजन कराया जाता है। 2 अप्रैल से चैत्र नवरात्र शुरू होने जा रहे है, आज हम आपको बताएगे कि चैत्र नवरात्र में किस तरह कन्या पूजन किया जाए।
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कन्या पूजन विधि –
नवरात्र में पंचमी से ही कन्या भोज शुरू हो जाते है जगह जगह भंडारे होते है वही घरों में कन्या पूजी जाती है, कन्याओं को बुलाकर उन्हे पूड़ी,हलवा,खीर खिलाकर उनके पैर पूजे जाते है, माना जाता है कि देवी अपनी आराधना से इतना खुश नहीं होती जितना कि वह अपने भक्तों के कन्या पूजन करने से होती है, इसलिए कन्या पूजन का अपना विशेष महत्व है कन्या पूजन के लिए सबसे चौकी में छोटी छोटी आयु की कन्याओ को बैठाकर पूजा जाता है, कहते है एक वर्ष या उससे छोटी कन्याओं की पूजा नहीं करनी चाहिए। एक वर्ष से छोटी कन्याओं का पूजन, इसलिए नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह प्रसाद नहीं खा सकतीं और उन्हें प्रसाद आदि के स्वाद का ज्ञान नहीं होता। वही पूजन के दिन कन्याओं पर जल छिड़कर रोली-अक्षत से पूजन कर भोजन कराना तथा भोजन उपरांत पैर छूकर यथाशक्ति दान देना चाहिए। इसके साथ ही ऊं द्वीं दूं दुर्गाय नमः मंत्र की एक, तीन, पांच, या ग्यारह माला जपें और हवन करें। इससे मां प्रसन्न होती हैं।
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नवरात्र में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है, हर दिन माँ के एक स्वरूप को पूजा जाता है, उसी तरह सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है। माना जाता है कि 2 वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से मां दुर्गा दुख और दरिद्रता दूर करती हैं। 3 वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है। त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्य आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है, 4 वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है। इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है। 5 वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है। 6 वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है। कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है। 7 वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है। चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, 8 वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है। इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है।