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Fri, Dec 5, 2025

श्रीकृष्ण ने की थी कुबेर देव के इस चमत्कारी मंदिर की स्थापना, मूर्ति की नाभि पर इत्र लगाने से धन मिलने की है मान्यता

Written by:Diksha Bhanupriy
धनतेरस और दीपावली के मौके पर कुबेर देव की पूजन का विशेष महत्व है। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर की जानकारी देते हैं, जिसे श्रीकृष्ण ने स्थापित किया था।
श्रीकृष्ण ने की थी कुबेर देव के इस चमत्कारी मंदिर की स्थापना,  मूर्ति की नाभि पर इत्र लगाने से धन मिलने की है मान्यता

दीपावली से पहले मनाए जाने वाले धनतेरस के पर्व पर भगवान कुबेर (Kuber Dev), धन्वंतरि और माता लक्ष्मी की पूजन अर्चन करने की विशेष परंपरा है। धनवंतरी देव आरोग्य प्रदान करते हैं माता लक्ष्मी सुख समृद्धि और सौभाग्य और कुबेर देव को धन का देवता कहा गया है। आपने अब तक अपने घर में लाफिंग बुद्धा के रूप में या फिर माता लक्ष्मी के दिवाली के दौरान मिलने वाले पाने में कुबेर देव को देखा होगा। आज हम आपको इनके एक मंदिर के बारे में बताते हैं जो बहुत ही खास है।

कुबेर देव के मंदिर देश में बहुत कम ही देखने को मिलते हैं। बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में कुबेर देव का एक खास मंदिर मौजूद है। श्री कृष्ण की शिक्षास्थली शांति बनी आश्रम में मौजूद इस मंदिर को स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने स्थापित किया था। इस मंदिर में विराजित कुबेर देव की पूजन का विशेष महत्व है और हर साल धनतेरस के मौके पर यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिलती है। चलिए आपको इस मंदिर के बारे में जानकारी देते हैं।

कुंडेश्वर महादेव मंदिर में हैं कुबेर देव (Kuber Dev)

उज्जैन में मंगलनाथ मंदिर मार्ग पर महर्षि सांदीपनि का आश्रम बना हुआ है। ये वही जगह है जहां पर भगवान श्री कृष्ण ने गुरु सांदीपनी से शिक्षा प्राप्त की थी। इस आश्रम परिसर में श्री कृष्ण बलराम मंदिर मौजूद है, जिसके पास 84 महादेव में से 40वें नंबर पर आने वाले कुंडेश्वर महादेव का मंदिर मौजूद है। इस मंदिर के गर्भ ग्रह में कुबेर देवता की प्राचीन प्रतिमा है। मंदिर अपने आप में खास इसलिए है क्योंकि यहां की छत पर श्री यंत्र की आकृति बनी हुई है।

नाभि पर लगाते हैं इत्र

स्थानीय लोगों के बीच जो मान्यता प्रचलित है उसके मुताबिक यहां विराजित कुबेर देव की पूजन करते समय उनकी नाभि पर इतरा लगाया जाता है। जो व्यक्ति ऐसा करता है उसके परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है। इसी मान्यता के चलते देशभर से लोग यहां आकर दर्शन कर सुख समृद्धि और सौभाग्य की कामना करते हैं।

धनतेरस के मौके पर यहां दो बार विशेष आरती भी की जाती है। इस दौरान भगवान को इत्र, मेवे, मिष्ठान और फल का भोग लगाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक जो व्यक्ति कुबेर देव के दर्शन कर लेता है, उसे धन की प्राप्ति होती है। यहां कुंडेश्वर महादेव मंदिर के द्वार पर जो नदी है वह खड़े हुए हैं। शिव जी के मंदिर में अक्सर नंदी जी की बैठी हुई प्रतिमा होती है लेकिन यह अद्भुत प्रतिमा लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र रहती है।

श्री कृष्ण लेकर आए थे कुबेर

इस मंदिर से जुड़ी जो प्राचीन कथा है उसके मुताबिक जब भगवान श्री कृष्णा सांदीपनि आश्रम से शिक्षा पूर्ण कर अपने निवास द्वारिका जाने लगे। तब गुरु दक्षिणा देने के लिए कुबेर धन लेकर आए थे। इस पर गुरु माता ने श्री कृष्ण से उनके पुत्र की शंखासुर राक्षस से रक्षा करने उन्हें वापस लाने की गुरु दक्षिणा मांगी। श्री कृष्ण गुरु पुत्र को मुक्त करवा कर गुरु माता को सौंप कर द्वारका चले गए और कुबेर वहीं बैठे रह गए। यही कारण है कि यहां पर कुबेर देव की बैठी हुई प्रतिमा मौजूद है।

1100 साल पुरानी प्रतिमा

मंदिर में कुबेर जी की जो प्रतिमा है वह 800 से 1100 वर्ष पुरानी बताई जाती है। शंगू लाल के शिल्पकारों ने बेसाल्ट पत्थर से इस प्रतिमा का निर्माण किया था। 3.5 फीट ऊंची इस प्रतिमा के चार हाथ हैं, जिनमें से दो में धन एक में सोम पत्र और एक हाथ आशीर्वाद मुद्रा में है। कुबेर देव की तीखी नाक, शरीर पर सजे आभूषण और उभरा हुआ पेट इसे आकर्षक बनाता है। इस तरह की प्रतिमा देश में केवल तीन जगह पर मौजूद है। एक उत्तर, दूसरा दक्षिण और तीसरा मध्य भारत में उज्जैन में यह प्रतिमा स्थापित है।