Parenting Tips: इन 3 तरह के खिलौनों से बच्चों को रखना चाहिए दूर, मानसिक स्वास्थ पर पड़ सकता है असर

Parenting Tips: बच्चों के लिए खिलौने चुनते समय, उनके विकास और मानसिक स्वास्थ्य पर उनका प्रभाव विचार करना महत्वपूर्ण है। हानिकारक खिलौनों से बचें और ऐसे खिलौने चुनें जो उन्हें सीखने, बढ़ने, खेलने और स्वस्थ रहने में प्रोत्साहित करें।

Bhawna Choubey
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Parenting Tips: खिलौने हर बच्चों को बेहद पसंद होते हैं। खिलौने कई प्रकार के आते हैं। जैसे-जैसे समय बदल रहा है वैसे-वैसे खिलौने की भी वैरायटी बदल रही है। जब कभी भी किसी भी बच्चे से पूछा जाता है कि आपको सबसे ज्यादा क्या पसंद है तो अधिकांश बच्चे यही जवाब देते हैं कि हमें खिलौने बेहद पसंद है। बच्चे बचपन में खिलौनों की दुनिया को ही अपनी दुनिया समझते हैं। आजकल तो बच्चों के जन्म से पहले ही घर में बच्चों के लिए ढेर सारे खिलौने पहले से ही होते हैं। इसके बाद तोहफे में भी लोग बच्चों को खिलौने ही देते हैं। इतना ही नहीं खिलौने में भी जेंडर होते हैं। अगर छोटी बच्ची है तो उसे डॉल डॉल सेट जैसे खिलौने दिए जाते हैं और अगर कोई छोटा बच्चा है तो उसे कर ट्रक जैसे खिलौने दिए जाते हैं। इसका यह मतलब है कि हम बचपन से ही बच्चों को जेंडर कैटेगरी डिवाइड कर देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बच्चों के कुछ-कुछ खिलौने उनके लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। जी हां, सुनने में शायद यह आपको अजीब लग रहा होगा लेकिन यह सच है। आज हम आपको इस लेख के द्वारा उन खिलौने के बारे में बताएंगे जिसे बच्चों को हमेशा दूर रखना चाहिए, तो चलिए जानते हैं।

किस तरह के खिलौने से बच्चों को रखना चाहिए दूर

हिंसक खिलौने

बच्चे नाजुक और गैरजिम्मेदार होते हैं, जो वे देखते और अनुभव करते हैं, उससे सीखते हैं। ऐसे में उन्हें बंदूक या अन्य हिंसक खिलौने देना, उन्हें हिंसा के प्रति आकर्षित कर सकता है।बच्चों के लिए बंदूक, तलवार और तीर-धनुष जैसे हिंसक खिलौने खतरनाक हो सकते हैं, हमें इन खिलौनों से बच्चों को दूर रखना चाहिए। खिलौने बच्चों के मन में हिंसा की छवि बनाते हैं और उन्हें हिंसक व्यवहार को स्वीकार्य मानने के लिए प्रेरित करते हैं। हिंसक खिलौने बच्चों में आक्रामकता और क्रोध को बढ़ावा देते हैं, जिससे वे झगड़े और शारीरिक हिंसा में लिप्त हो सकते हैं। हिंसक खिलौने बच्चों में डर और चिंता पैदा कर सकते हैं, जिससे उन्हें असुरक्षित और भयभीत महसूस हो सकता है।

विडिओ गेम्स

आजकल के बच्चे कम उम्र से ही मोबाइल और कंप्यूटर का इस्तेमाल करना सीख जाते हैं और जल्दी ही इनके आदी भी हो जाते हैं। यह चिंता का विषय है क्योंकि अत्यधिक स्क्रीन टाइम बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। स्क्रीन के सामने ज़्यादा समय बिताने से बच्चे कम सक्रिय होते हैं, जिससे मोटापे और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी नींद के हार्मोन मेलाटोनिन के उत्पादन को बाधित कर सकती है, जिससे नींद की कमी और थकान हो सकती है। स्क्रीन को लगातार देखने से आंखों पर दबाव पड़ता है, जिससे आंखों की थकान, धुंधलापन और यहां तक कि स्थायी दृष्टि हानि भी हो सकती है। स्क्रीन का लगातार उपयोग एकाग्रता और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को कम कर सकता है। स्क्रीन टाइम को सीमित करने पर बच्चों में चिड़चिड़ापन, मूड स्विंग और यहां तक कि आक्रामकता भी हो सकती है।

डॉक्टर सेट

कई लोग अपने बच्चों को डॉक्टर बनते हुए देखने का सपना देखते हैं। शायद यही वजह है कि “बड़े होकर क्या बनना चाहते हो?” के सवाल का जवाब अक्सर “डॉक्टर” होता है। डॉक्टर सेट बच्चों को डॉक्टर बनने के लिए प्रेरित करने का एक तरीका हो सकता है। लेकिन, कुछ संभावित नकारात्मक प्रभाव भी हैं जिन पर विचार करना चाहिए। डॉक्टर सेट के साथ खेलने से, बच्चे बीमारियों का नाटक करना शुरू कर सकते हैं, ध्यान आकर्षित करने के लिए या माता-पिता को खुश करने के लिए। यह चिंता का विषय हो सकता है यदि यह बार-बार होता है, क्योंकि यह स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का संकेत हो सकता है। कम उम्र से ही, बच्चे डॉक्टर बनने का दबाव महसूस कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके माता-पिता यही चाहते हैं। यह भारी दबाव बच्चों के लिए हानिकारक हो सकता है, खासकर अगर वे चिकित्सा क्षेत्र में रुचि नहीं रखते हैं।

(Disclaimer- यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं के आधार पर बताई गई है। MP Breaking News इसकी पुष्टि नहीं करता।)


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Bhawna Choubey

Bhawna Choubey

इस रंगीन दुनिया में खबरों का अपना अलग ही रंग होता है। यह रंग इतना चमकदार होता है कि सभी की आंखें खोल देता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि कलम में बहुत ताकत होती है। इसी ताकत को बरकरार रखने के लिए मैं हर रोज पत्रकारिता के नए-नए पहलुओं को समझती और सीखती हूं। मैंने श्री वैष्णव इंस्टिट्यूट ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन इंदौर से बीए स्नातक किया है। अपनी रुचि को आगे बढ़ाते हुए, मैं अब DAVV यूनिवर्सिटी में इसी विषय में स्नातकोत्तर कर रही हूं। पत्रकारिता का यह सफर अभी शुरू हुआ है, लेकिन मैं इसमें आगे बढ़ने के लिए उत्सुक हूं।मुझे कंटेंट राइटिंग, कॉपी राइटिंग और वॉइस ओवर का अच्छा ज्ञान है। मुझे मनोरंजन, जीवनशैली और धर्म जैसे विषयों पर लिखना अच्छा लगता है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता समाज का दर्पण है। यह समाज को सच दिखाने और लोगों को जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मैं अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करूंगी।

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