Parenting Tips: बेहतर पैरेंटिंग के लिए सुधा मूर्ति की सीख, पहले खुद को बदलें, फिर बच्चों को सिखाएं

Parenting Tips: सुधा मूर्ति की सिखाए गए पैरेंटिंग विधियाँ बच्चों को समझाने में मदद कर सकती हैं, परंतु उन्हें समझने के लिए पहले खुद को बदलना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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Parenting Tips: राज्य सभा सांसद सुधा मूर्ति की जीवनशैली और उनके अनुभव हमें यह सिखाते हैं कि बच्चों को सुधारने से पहले खुद में बदलाव करना अत्यंत आवश्यक है। सुधा मूर्ति ने अपने बच्चों की परवरिश मिडिल क्लास के मूल्यों के साथ की, जिसमें सादगी, अनुशासन और नैतिकता का विशेष महत्व है। उनके अनुसार, यदि आप अपने बच्चे की जिंदगी संवारना चाहते हैं, तो आपको खुद में भी सुधार करना होगा। इसके लिए आत्म-अनुशासन, ईमानदारी, समय की पाबंदी, और अपने कार्यों में प्रतिबद्धता जैसी आदतों को अपनाना होगा। सुधा मूर्ति की इन सीखों को अपने जीवन में उतारकर न केवल आप अपने बच्चों के लिए एक आदर्श बन सकते हैं, बल्कि उनके भविष्य को भी बेहतर बना सकते हैं। बच्चों को अपने व्यवहार से सिखाना सबसे प्रभावी तरीका है, और जब वे अपने माता-पिता को सकारात्मक बदलाव करते हुए देखते हैं, तो वे भी उन्हीं आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा लेते हैं।

पैसों की अहमियत समझाएं

सुधा मूर्ति का दृष्टिकोण हमें सिखाता है कि बच्चों को पैसे की अहमियत समझाने के लिए धैर्य और समझदारी की आवश्यकता है। एक बार जब उनके बेटे रोहन ने पांच स्टार होटल में बर्थडे पार्टी के लिए पैसे मांगे, तो उन्होंने उसे बुरी तरह डांटने के बजाय शांतिपूर्वक इसके नकारात्मक पक्षों को समझाया। सुधा मूर्ति का मानना है कि पैरेंट्स अपने बच्चों पर पैसे खर्च करना चाहते हैं, इसमें कुछ गलत नहीं है, लेकिन बच्चों को पैसे की मूल्य और उसकी सही उपयोगिता का महत्व समझाना आवश्यक है। उन्होंने रोहन को सिखाया कि पैसे का उचित प्रबंधन और आवश्यकताओं के अनुसार खर्च करना कितना महत्वपूर्ण है। इस दृष्टिकोण से न केवल बच्चे पैसे की अहमियत को समझते हैं, बल्कि वे अपने भविष्य में वित्तीय जिम्मेदारियों को भी बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं।

दूसरों की मदद करने का महत्व

सुधा मूर्ति ने एक अद्वितीय और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए अपने बेटे रोहन को पैसे की अहमियत समझाई। उन्होंने मैथ की मदद से उसे समझाया। उन्होंने रोहन से कहा कि अगर वह 50 बच्चों को इनवाइट करता है और एक बच्चे पर एक हजार रुपये खर्च होते हैं, तो पार्टी में कम से कम 50 हजार रुपये खर्च होंगे। इसके बजाय, उन्होंने उसे बताया कि उनके ड्राइवर के भी दो बच्चे हैं, जिनकी स्कूल फीस 10 हजार रुपये प्रति बच्चा है। अगर वह 20 हजार रुपये ड्राइवर के बच्चों की पढ़ाई के लिए दे देता है, तो उनकी शिक्षा बेहतर हो सकेगी। इस उदाहरण से सुधा मूर्ति ने अपने बेटे को न केवल पैसे का मूल्य समझाया, बल्कि उसे दूसरों की मदद करने का महत्व भी सिखाया, जिससे वह पैसे के सही उपयोग को समझ सके।

भेदभाव न करना

सुधा मूर्ति का मानना है कि बच्चों को बराबरी का महत्व समझाना बहुत जरूरी है, क्योंकि बच्चे मासूम होते हैं और समाज के भेदभाव से अंजान होते हैं। उन्हें लोगों के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव करना नहीं सिखाना चाहिए, इससे उनका मन साफ और निष्पक्ष रहेगा। हालांकि, केवल बच्चों को सीख देने से पर्याप्त नहीं है। पैरेंट्स को भी अपने मन से भेदभाव निकालना होगा, क्योंकि बच्चे अपने माता-पिता को देखकर ही सीखते हैं। यदि आप बच्चों के सामने सभी लोगों को बराबर मानेंगे और समान व्यवहार करेंगे, तो वे भी आपसे प्रेरित होकर सभी को समान रूप से सम्मान देंगे। इस प्रकार, आप न केवल अपने बच्चों को बेहतर नागरिक बना सकते हैं, बल्कि समाज में भी समानता और समरसता का संदेश फैला सकते हैं।

 


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भावना चौबे

भावना चौबे

इस रंगीन दुनिया में खबरों का अपना अलग ही रंग होता है। यह रंग इतना चमकदार होता है कि सभी की आंखें खोल देता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि कलम में बहुत ताकत होती है। इसी ताकत को बरकरार रखने के लिए मैं हर रोज पत्रकारिता के नए-नए पहलुओं को समझती और सीखती हूं। मैंने श्री वैष्णव इंस्टिट्यूट ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन इंदौर से बीए स्नातक किया है। अपनी रुचि को आगे बढ़ाते हुए, मैं अब DAVV यूनिवर्सिटी में इसी विषय में स्नातकोत्तर कर रही हूं। पत्रकारिता का यह सफर अभी शुरू हुआ है, लेकिन मैं इसमें आगे बढ़ने के लिए उत्सुक हूं।मुझे कंटेंट राइटिंग, कॉपी राइटिंग और वॉइस ओवर का अच्छा ज्ञान है। मुझे मनोरंजन, जीवनशैली और धर्म जैसे विषयों पर लिखना अच्छा लगता है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता समाज का दर्पण है। यह समाज को सच दिखाने और लोगों को जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मैं अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करूंगी।

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