Sahityiki : साहित्यिकी में आज पढ़िए प्रेमचंद की कहानी ‘गुब्बारे पर चीता’

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Sahityiki : आज शनिवार है और हम अपनी पढ़ने की आदत को बेहतर करने के क्रम में लगातार आगे बढ़ रहे हैं। क्योंकि जैसे जैसे तकनीक हावी हो रही है, किताबें छूटती जा रही है। ऐसे में कहीं हम पढ़ने को बिसरा ही न दें, ये ध्यान रखना आवश्यक है। इसीलिए हर वीकेंड हम साहित्यिकी श्रेणी में कुछ ऐसा पढ़ते है, जो हमारी पढ़ने की आदत और रुचि दोनों बनाए रखे। आज हम फिर एक बार लेकर आए हैं कथा सम्राट प्रेमचंद की एक कहानी।

गुब्बारे पर चीता

“मैं तो ज़रूर जाऊँगा, चाहे कोई छुट्टी दे या न दे।”
बलदेव सब लड़कों को सरकस देखने चलने की सलाह दे रहा है।
बात यह थी कि स्कूल के पास एक मैदान में सरकस पार्टी आई हुई थी। सारे शहर की दीवारों पर उसके विज्ञापन चिपका दिए गए थे। विज्ञापन में तरह-तरह के जंगली जानवर अजीब-अजीब काम करते दिखाए गए थे। लड़के तमाशा देखने के लिए ललचा रहे थे। पहला तमाशा रात को शुरू होने वाला था मगर हेडमास्टर साहब ने लड़कों को वहाँ जाने की मनाही कर दी थी। इश्तिहार बड़ा आकर्षक था-
‘आ गया है! आ गया है!’
‘जिस तमाशे की आप लोग भूख-प्यास छोड़कर इंतज़ार कर रहे थे, वही बंबई सरकस आ गया है।’
‘आइए और तमाशे का आनंद उठाइए। बड़े-बड़े खेलों के सिवा एक खेल और भी दिखाया जाएगा, जो न किसी ने देखा होगा और न सुना होगा।’
लड़कों का मन तो सरकस में लगा हुआ था। सामने किताबें खोले जानवरों की चर्चा कर रहे थे। क्योंकर शेर और बकरी एक बर्तन में पानी पिएँगे! और इतना बड़ा हाथी पैरगाड़ी पर कैसे बैठेगा ? पैरगाड़ी के पहिए बहुत बड़े-बड़े होंगे! तोता बंदूक छोड़ेगा! और बनमानुष बाबू बनकर मेज पर बैठेगा!
बलदेव सबसे पीछे बैठा हुआ अपनी हिसाब की कॉपी पर शेर की तस्वीर खींच रहा था और सोच रहा था कि कल शनीचर नहीं, इतवार होता तो कैसा मज़ा आता।

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About Author
श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।