जाने कहां गए वो दिन..90 के दशक की कुछ यादगार चीजें जो हो गई गुम

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। पिछले 10-15 साल में तकनीक ने हमारी जिंदगी को जिस तरह से बदला है, वैसा पहले के दशकों में कभी नहीं हुआ। हमारे जीवन में सुविधाएं बढ़ी हैं और यकीनन हम इनके आदी भी हुए हैं। लेकिन क्या आपको याद है कि इसी दौरान हमारे जीवन से कुछ चीज़ें एकदम से गायब हो गई। वो जो कभी हमारी रोजमर्रा की आदत हुआ करती थी, अब शायद हमें याद भी नहीं। आज हम ऐसी ही कुछ चीज़ों के बारे में बात करेंगे।

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क्या आपको अलार्म क्लॉक याद है। इसी के साथ हमारी सुबह की नींद खुलती थी। अक्सर हमारे बेडसाइड टेबल पर ये रखी होती और रात में हम इसमें चाबी भरते थे। सुबह इसकी आवाज से ही हमारी नींद टूटती। लेकिन अब ये सब हमारे मोबाइल में आ गया है और ये अब केवल शोपीस बनकर रह गई है।

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वो फोन जो एक समय स्टेटस सिंबल भी हुआ करता था। पहले काले रंग का टेलीफोन होता था जिसमें गोल घुमाकर नंबर डायल करने पड़ते थे। इसके बाद बटन वाला टेलीफोन आया। उस समय सबके घरों में फोन होते भी नहीं थे, और जिसके घर होता था उसका नंबर मोहल्ले के सभी लोगों के रिश्तेदारों के पास होता। फोन की घंटी भी उस समय किसी संगीत से कम नहीं लगती थी।

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वो ऑडियो कैसेट भला हम कैसे भूल सकते हैं। 90 के दशक में टेप रिकॉर्डर, डेक या फिर वॉकमेन में कैसेट्स लगाकर सुनने की कितनी मीठी यादें हैं। शुरुआत में कैसेट काफी महंगी आती थी, फिर टी सीरिज ने इस क्षेत्र में एक नई क्रांति लाई और उसके बाद इनके दाम काफी कम हुए। उस समय फिल्मों के अलावा म्यूजिक एल्बम का भी काफी चलन था और कैसेट्स में ये सारे उपलब्ध थे।

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शटर वाला टीवी अब भी कई लोगों के ज़हन में होगा। उस समय टीवी में बाकायदा डोर होते थे और स्विच ऑफ करने के बाद टीवी को ससम्मान उसके दरवाजे में बंद कर दिया जाता था। टीवी भी उस समय एक लग्जरी थी और मोहल्ले में जिसके घर टीवी होता, उसी के यहां सारा जमावड़ा रहता।

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चल मेरी लूना…ये विज्ञापन उस समय बेहद लोकप्रिय था और लूना भी। ये एक अफोर्डेबल और आरामदायक सवारी थी। इसे चलाना काफी आसान था और स्कूल के बच्चे भी इसपर हाथ आज़मा लेते थे। कॉलेज गोइंग यूथ को तो ये बहुत प्रिय थी। उस समय जब कई लोग साइकिलों से भी कॉलेज जाते थे, लूना एक शान की सवारी थी।

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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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