दरअसल साल के अंत में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले राज्य सरकार अधिकारी कर्मचारियों की नाराजगी को दूर करने की कोशिश कर सकती है। उच्च स्तर पर प्रमोशन की प्रक्रिया शुरू करने पर विचार किया जा रहा है। सरकार बीच का रास्ता निकाल कर अधिकारी कर्मचारियों को पदोन्नति दे सकती है। जुलाई से सितंबर महीने में पदोन्नति देने की शुरुआत की जा सकती है।
हालांकि फिलहाल इस पर सरकार की तरफ से कोई स्पष्टीकरण सामने नहीं आया है लेकिन पदोन्नति उच्च न्यायालय के निर्णय के अधीन रहने वाली है। ऐसा माना जा रहा है कि न्यायालय द्वारा जो निर्णय रहेगा, अधिकारी कर्मचारियों को स्वीकार करना पड़ेगा।
प्रदेश में 7 साल से प्रमोशन पर रोक
बता दें कि मध्य प्रदेश में 7 साल से प्रमोशन पर रोक लगी हुई है। लाखों कर्मचारी अब तक बिना प्रमोशन के सेवानिवृत्त हो चुके हैं। राज्य कर्मचारियों के अधिकारी कर्मचारी की नाराजगी दूर करने के लिए दूसरे विकल्प को तलाशा जा रहा है। ऐसे में वरिष्ठ पद का प्रभार देकर अधिकारी कर्मचारियों के नाराजगी को दूर किया जा सकता है। इससे पहले पुलिस और जेल विभाग के कर्मचारियों को वरिष्ठ पद का प्रभार सौंपा गया था। स्कूल शिक्षा विभाग के कर्मचारियों को भी प्रभार दिया जा रहा है। हालांकि अधिकारी कर्मचारियों की मांग है कि उन्हें प्रमोशन दिया जाए और वह उच्च प्रभार से संतुष्ट नहीं है।
कर्मचारियों का विरोध
पिछले 7 साल से प्रदेश में 70 हजार कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं। जिनमें से 39000 कर्मचारी ऐसे हैं, जिन्हें रिटायरमेंट से पहले प्रमोशन मिलना था। हालांकि उन्हें प्रमोशन का लाभ नहीं दिया गया। हर साल 5000 से अधिक कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं और प्रमोशन ना मिलने से कर्मचारियों में विरोध देखा जा रहा है।
कर्मचारी संघ की मांग
मामले में मध्यप्रदेश तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के सचिव उमाशंकर तिवारी और मध्य प्रदेश लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मचारी संघ के अध्यक्ष एमपी दिवेदी का कहना है कि पदोन्नति कर्मचारियों का अधिकार है। उन्हें मिलना चाहिए। वरिष्ठ प्रभार मिलने से अधिकारी कर्मचारियों को पैसा तो मिलेगा लेकिन प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी। इसके साथ ही कर्मचारियों द्वारा आंदोलन की भी चेतावनी दी जा रही है।
ज्ञात हो कि 2016 को जबलपुर उच्च न्यायालय द्वारा मध्यप्रदेश लोकसेवा पदोन्नति नियम 2002 को निरस्त कर दिया गया था। जिसके बाद इस मामले में सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में अपील की गई थी। हालांकि अभी तक मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।