देशभर में एक तरफ राफेल और सिख दंगों का मुद्दा गरमाया हुआ है। वहीं एक बात सामने आने लगी की भाजपा मप्र में करीब 13 सांसद को टिकट नहीं देगी। इस मामले में पार्टी ने मंथन भी कर लिया। विधानसभा चुनाव में हारे सांसदों पर दांव लगाने के मूड़ में नहीं है। ऐसी स्थिति में नए लोगों के नाम पर विचार संभव है।
नीमच। श्याम जाटव।
मप्र विधानसभा चुनाव में भाजपा ने हार के बाद लोकसभा चुनाव पर फोकस कर दिया। वर्तमान में यहां से 26 सांसद भाजपा के है और 3 कांग्रेस के। दिसंबर 2018 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 3 सांसदों को विधानसभा का टिकट दिया था। आलोट से सांसद मनोहर उंटवाल और पूर्व लोक निर्माण मंत्री नागेंद्र सिंह जीते लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के भतीजे अनूप मिश्रा को पराजय का सामना करना पड़ा। ऐसी स्थिति में इन तीनों को लोकसभा का टिकट मिलना मुश्किल है। दूसरी बात विधानसभा में भाजपा के केवल 109 विधायक है। ऐसे में पार्टी किसी विधायक को लोकसभा टिकट देकर विधानसभा में अपनी सीटें कम कराने से परहेज करेगी।
पहली बार बने सांसद पर दांव नहीं
अंदरखाने की चर्चा है कि वर्तमान में भाजपा विधानसभा चुनाव के बाद फूंक-फूंक कर कदम रख रही है और अगामी लोकसभा चुनाव में किसी भी प्रकार की रिस्क नहीं लेना चाहती है। इसी बात को ध्यान में रखकर 13 सांसदों को टिकट दे सकती। वहीं जो सांसद पहली या चौथी बार जीते है उनके नाम पर शायद ही पार्टी विचार करें। इस बार पार्र्टी किसी भी प्रकार का रिस्क लेने को तैयार नहीं है और इसी वजह से जीतने वाले उम्मीदवार पर ही भरोसा किया जाएगा।
पहली बार के सांसद से नाराजगी
मंदसौर-नीमच संसदीय क्षेत्र के सांसद सुधीर गुप्ता है। गुप्ता पहली बार सांसद बने है। अपनी अमेरिकन स्टाईल वाली छवि से जनता के बीच उभर नहीं पाएं और इसी वजह से दोबारा मौका मिलना दूर की कोड़ी है। सांसद गुप्ता को जिस प्रकार से कांग्रेस के पूर्व विधायक डॉ. संपस्वरूप जाजू ने रेल व पासपोर्ट वाले मुद्दे पर घेरा उससे उनकी बहुत किरकिरी हुई। इन्होंने सांसद निधि वितरण करने में काफी कंजूसी बरती है जिससे भी नगर पंचायत व ग्राम पंचायत के जनप्रतिनिधि खफा है। गुप्ता ने सबसे ज्यादा रूचि एंबुलेंस व पानी के टेंकर देने में दिखाई हैं।
इन्हें मिल सकता है मौका
मंदसौर कृषि उपज मंडी अध्यक्ष व किसान नेता बंशीलाल गुर्जर, रतलाम विधायक चेतन्य कश्यप व पूर्व सांसद स्व. डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडे के बेटे सुरेंद्र पांडे के नाम पर मुहर लग सकती है। सुरेंद्र के पिता 8 बार लोकसभा के सदस्य रहे है और सुरेंद्र भी संसदीय क्षेत्र में सक्रिय है। वहीं गुर्जर पिछले लोकसभा चुनाव में टिकट के दावेदार थे लेकिन आरएसएस के दखल की वजह से दौड़ से बाहर हो गए। विधायक कश्यप क�� प्रदेश मे सरकार नहीं बनने का मलाल है उन्हें भरपूर आस थी सत्ता आई तो मंत्री बनना तय था। अब लोकसभा में मौका नहीं मिला तो राज्यसभा मे भी जा सकते है।
100 टिकट बदलने की संभावना
सूत्रों की मानें तो मप्र के विदिशा से लोकसभा सांसद सुषमा स्वराज व पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने चुनाव नहीं लड़ने का सार्वजनिक ऐलान पहले की कर दिया। अब वर्तमान में तीन सांसद तो पहले ही विधानभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव की दौड़ से बाहर हो गए और 2 सांसद ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। यानि कुल 5 सांसद कम हो गए। अब बचे 21 सांसद जिस पर भाजपा फिर से दांव लगाए या नहीं ये कहना बहुत ही कठिन है।