भोपाल। एक साल से ज्यादा समय से प्रदेश में संगठन पद से दूर अरुण यादव को प्रदेश कांग्रेस में फिर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी हासिल हो गई है। अध्यक्ष के नाम को लेकर मची ऊहापोह की स्थिति को शांत करने के लिए राष्ट्रीय संगठन द्वारा निकाले गए इस फार्मूल में प्रदेश के दिग्गज नेता माने जाने वाले सुरेश पचौरी को दूर रखा है।
ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी ने हाल ही में देशभर में संगठन को मजबूती देने के लिए समन्वय समितियां गठित की हैं। प्रदेश के लिए बनाई गई इस का सूत्रधार दीपक बावरिया को बनाया गया है, जबकि कमेटी में मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरुण यादव, जीतू पटवारी और मीनाक्षी नटराजन को शामिल किया गया है। प्रदेश की राजनीति में अहम दखल रखने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया का नाम इसमें शामिल न होना प्रदेश की कांग्रेस सियासत के नए समीकरणों की तरफ इशारा कर रहा है। इस एक समिति ने जहां अरुण यादव के लिए प्रदेश सियासत के नए द्वार खोले गए हैं, वहीं पचौरी के लिए कुछ नई व्यवस्थाओं की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी हैं।
किसके लिए क्या मायने
– नाथ और सिंह : प्रदेश में सरकार और संगठन चलाने के सबसे मजबूत किले के रूप में मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का ही नाम लिया जा रहा है। ऐसे में समन्वय समिति में इन दोनों नेताओं की मौजूदगी इस बात की तरफ इशारा कर रही है कि फिलहाल इनका जादू प्रदेश में जारी है और इनका डंका दिल्ली दरबार तक भी बजता रहेगा।
– ज्योतिरादित्य सिंधिया : प्रदेशाध्यक्ष की दौड़ में सबसे आगे रहे सिंधिया को समन्वय समिति में शामिल किया जाना उनके अभियान को कमजोर करने वाला भी कहा जा सकता है और इससे उनकी नाराजगी तथा महत्वाकांक्षा को शांत करने वाला भी। लगातार उनकी डिनर डिप्लोमेसी से प्रदेश में सत्ता और संगठन दोनों ही अस्थिरता की तरफ बढ़ते नजर आए हैं। संभवत: राज्यसभा में भेजे जाने का आश्वासन लिए हुए सिंधिया को फिलहाल समन्वय की रस्सी थमाकर इस बात को साबित करने की कोशिश की गई है कि वे संगठन के आपसी तालमेल बनाने के लिए सुने जाते रहेंंगे।
– अरुण यादव : प्रदेशाध्यक्ष की भूमिका बेहतर तरीके से निभा चुके अरुण यादव को पुन: अध्यक्षीय जिम्मेदारियां सौंपे जाने की चर्चाएं उठती रही हैं। राष्ट्रीय टीम में महत्वपूर्ण पद रखने वाले अरुण के पास फिलहाल प्रदेश की कोई जिम्मेदारी नहीं थी। सांसद चुनाव हारने के बाद भी उनकी क्षेत्र में सक्रियता और सहकारिता तथा किसान वर्ग पर बेहतर पकड़ रखने के चलते उनकी जरूरत सरकार को भी है और संगठन को भी इससे मकसद बंधा रहता है। समन्वय समिति के दाखिले के साथ अरुण यादव को प्रदेश की कांग्रेस सियासत में कद भी मिला है और उनकी भविष्य की संभावनाओं को बढ़ाने जैसा कदम भी इसको कहा जा सकता है।
– जीतू-मीनाक्षी : कम उम्र के एक मंत्री और एक पूर्व सांसद को समन्वय समिति में शामिल किया जाना इस बात को साबित कर रहा है कि पूर्व एआईसीसी अध्यक्ष राहुल गांधी की युवा पसंद अब भी बरकरार है। जीतू पटवारी ने सीमित समय में प्रदेश की सियासत से लेकर सत्ता तक में अपनी महत्वपूर्ण मौजूदगी दर्ज करा ली है। प्रदेश कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभाते हुए उन्हें मजबूत नेता के रूप में देखा जाने लगा था, अब समन्वय समिति में दिग्गजों की टीम में उन्हें शामिल किया जाना उनके राजनीतिक कद को बढ़ाने वाला कदम कहा जा सकता है।
अल्पसंख्यक रह गए दरकिनार
प्रदेश की कार्यकारिणी से लेकर केन्द्रीय संगठन से तैयार हुई समन्वय समिति तक में किसी मुस्लिम नेता को शामिल न किया जाना कांग्रेस की मंशाओं पर प्रश्रचिन्ह लगाने जैसा कहा जा सकता है। डॉ. अजीज कुरैशी, असलम शेर खान समेत कई पुराने कांग्रेसियों को समिति से दूर रखा गया है। जबकि मौजूदा मंत्री और कांग्रेस के सीनियर लीडर आरिफ अकील को भी यहां जगह नहीं दी गई है। कांग्रेस के नए विधायक के रूप में आरिफ मसूद भी इस पद के लिए योग्य कहे जा सकते थे।