BHOPAL AIIMS NEWS : एम्स भोपाल में मंगलवार को पहली क्लिनिकल ऑटोप्सी की गई। एक युवा महिला की बच्चे को जन्म देने के कुछ दिन बाद मृत्यु हो गई। मृतक के पति को शव परीक्षण के बारे में पता था, उसे शव परीक्षण पर विश्वास था और उसने अपनी पत्नी का शव परीक्षण कराने के लिए कहा।
मृत्यु के कारणों का चलता है पता
पैथोलॉजी, प्रसूति एवं स्त्री रोग और फोरेंसिक मेडिसिन विभागों के सहयोग से शव परीक्षण किया गया। दरअसल शव परीक्षण उन निष्कर्षों को प्रकट कर सकता है जो चिकित्सकीय रूप से ज्ञात नहीं हैं और अंगों में विकृति को प्रमाणित या नकारने में मदद कर सकते हैं। इससे मृत्यु के कारण का पता लगाया जा सकता है। शव परीक्षण प्रक्रिया में लगभग एक से 2 घंटे लगते हैं और शव परीक्षण मामले की हिस्टोपैथोलॉजिकल, जैव रासायनिक और सूक्ष्मजीवविज्ञानी जांच के विश्लेषण और संकलन में 7 से 10 दिन लग सकते हैं।
क्लिनिकल ऑटोप्सी सुविधा
क्लिनिकल ऑटोप्सी सुविधा अब एम्स भोपाल में मौजूद है। शव परीक्षण एक स्वच्छ मोर्चरी में पूरे सम्मान के साथ किया जाता है। टीम में शव विच्छेदन, नमूने एकत्र करने, नोट्स लेने और तस्वीरें लेने के लिए अलग अलग व्यक्ति होते हैं। खोपड़ी को सक्शन के साथ ऑसिलेटरी इलेक्ट्रिक आरी द्वारा खोला जाता है और निर्धारित वायु चक्र को बनाए रखने के लिए मोर्चरी में एचवीएसी और सक्शन सुविधा होती है। मोर्चरी में डाउनड्राफ्ट ऑटोप्सी टेबल और डाउनड्राफ्ट विच्छेदन बेंच का उपयोग किया जाता है।
मोबाईल ले जाने की भी अंदर अनुमति नहीं
शव परीक्षण के दौरान शवगृह में मोबाइल ले जाने की अनुमति नहीं है। पैथोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. वैशाली वालके, प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की प्रमुख डॉ. पुष्पलता के, फोरेंसिक मेडिसिन और टॉक्सिकोलॉजी की प्रमुख डॉ. अरनीत अरोड़ा, पैथोलॉजी की डॉ. दीप्ति जोशी और फोरेंसिक मेडिसिन और टॉक्सिकोलॉजी की डॉ. जयंती यादव ने इस प्रक्रिया को सुचारु रूप से संपन्न किया। एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रोफेसर (डॉ ) अजय सिंह का समर्थन, प्रोत्साहन और अनुमोदन इस मील के पत्थर के लिए महत्वपूर्ण था।